YASHPAL SINGH ADVOCATE RAMPUR MANIHARAN
सोमवार, 6 जून 2011
हम से जाओ न बचाकर आँखें
हम से जाओ न बचाकर आँखें
यूँ गिराओ न उठाकर आँखें
ख़ामोशी दूर तलक फैली है
बोलिए कुछ तो उठाकर आँखें
अब हमें कोई तमन्ना ही नहीं
चैन से हैं उन्हें पाकर आँखें
मुझको जीने का सलीका आया
ज़िन्दगी ! तुझसे मिलाकर आँखें।
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