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सोमवार, 15 नवंबर 2010

समझते हैँ वो के पत्थर है हम

समझते है वो के
पत्थर है हम।

उनको ठोकर मार जायेगे हम।

वो एक बार कह दे नफरत है हम से,

खुदा कसम पत्थर तो क्या फूल बनकर,

भी राह में नहीं आयेगे हम।

ज़िन्दगी में बहुत बार वक़्त
ऐसा आयेगा जब

तुमको चाहने वाला ही तुमको रुलाएगा

पर विश्वाश रखना उस पर
अकेले में वो तुमसे कही
ज्यादा आंसू

बहाएगा ...

ना पूछ के मेरे सबर की इन्तहा कहा तक
है।

तू सितम करके देख तेरी ताकत जहा तक है

वफ़ा की उम्मीद उन्हें होगी पर

मुझे देखना है के तू बेवफा कहा तक
है ..

कुछ लोग सितम करने को तैयार बैठे है।

कुछ लोग हम पैर दिल हार बैठे है।

इश्क को आग का दरिया ही समझ लीजिये।

कुछ इस पर कुछ उस पर बैठे है ..

वो हम को पत्थर और खुद को फूल कह कर
मुस्कुराया करते है।

उन्हें क्या पता पत्थर तो पत्थर
ही रहते है फूल ही मुरझाया करते है ..

कुछ खोने का गम ही डर की वजह बनता है।

इसलिए आओ तमाम
गमो को अपनी खुशियों मे बदले
और साबित कर दे की
डर के आगे जीत है ..

बिता लेंगे तेरे इंतजार मे ज़िन्दगी

तू एक बार आने का वादा तो कर

हम बना लेंगे अपने हाथो से कबर अपनी

तू चिराग जलाने
का वादा तो कर नवम्बर 2

गुरुवार, 11 नवंबर 2010

अब लिखने को क्या बाकि है

अब क्या लिखें हम कागज़ पर, अब लिखने
को क्या बाकी है !!
इक दिल था सो वो टूट गया, अब टूटने
को क्या बाकी है !!
इक शक्स को हम ने चाहा था, इक रेत पे
नक्शा बनाया था !!
वो रेत तो हवा बिखरे चुकी, वो नक्शा
कहाँ अब बाकी है !!
जो सपने हमने देखे थे काग़ज़ पर सारे
लिख डाले हैँ !!
वो सारे काग़ज़ फिर हम ने दरिया के
हवाले कर डाले है !!
वो सारे ख्वाब बहा डाले, वो सारे नक्श
मिटा डाले !!
अब ज़हां है खाली नक्शों का, कोई
ख्वाब कहाँ अब बाकी है !!
हम जिनको अपनी नज़मो का, लफ्ज
बनाया करते थे !!
लफ्जों का बना कर ताजमहल, काग़ज़ पर
सजाया करते थे !!
वो हम को अकेला छोड़ गए, सब
रिश्तों से मुंह मोड़ गए !!
अब रास्ते सारे सूने हैं, वो प्यार
कहाँ अब बाकी है !!
अब क्या लिखें हम कागज़ पर, अब लिखने
को क्या बाकी

सोमवार, 8 नवंबर 2010

दिपावली के पलो को इस तरह बिताया हमनेँ।

दिपावली के पल इस तरह बिताया हमने।

दिपावली पर तुम से मिलने का मन बनाया हमने।

दीप जलाकर छत पर सजाने के बहाने।

तुम से अकेले मेँ मिलना चाहा हमने।

दिपावली के पलो को इस तरह बिताया हमने।।

पर नही हो सकी तुम से मुलाकात अधूरी थी सब बात

इस बार भी किस्मत से धोखा खाया हमने।

दिपावली के पलो को इस तरह बिताया हमने।

दुबारा मिलने की कौशिश बिजली के जलते बल्बो को ठीक करने के बहाने से की थी।

पर नजरे तुम्हे ढुढने मेँ लगी थी और हाथ छु गया नँगे तार ।

इस बार बिजली का तगडा झटका खाया हमने।

दिपावली के पलो को इस तरह बिताया हमने।।

एस एम एस पैक काम नही करते त्यौहारो पर।

विस करना था तुमको जरुरी

इसलिए एस एम एस के भी पूरा चार्ज कटाया हमने।

दिपावली के पल इस तरह बिताये हमने