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शुक्रवार, 26 अगस्त 2011

दिन में सोने वालो का बस हाल न पूछो,





दिन में सोने वालो का बस हाल न पूछो!
अपनी इस आदत के कारण कितना करते ,
ये नुकसान न पूछो !

यदि,
होते है, ये दुकानदार 
तो, ये सोते रह जाते
और सामने से ,
इन्हें सोता देख,
गूजर  जाता है, 
ग्राहक! जिससे 
प्रभावित होता 
इनका कारोबार,
चोपट हो जाता कैसे ,
इनका, तुम 
व्यापार,
न पूछो !
दिन में सोने वालो का बस हाल न पूछो!
अपनी इस आदत के कारण कितना करते ,
ये नुकसान न पूछो !

यदि,
होते है, ये अध्यापक,
तो खचा- खच भरी ,
रहती है, इनकी क्लास 
ये सो जाते है, कक्षा में !
सिर,  कुर्सी  पर रख कर,
छात्राए , 
करती  रहती मेकप,
छात्र मचाते हा-होल्ला ,
 करते है ,आराम 
ये उठते , हडबडा कर,
कितने होते ,
परेशान,
न,पूछो !

दिन में सोने वालो का बस हाल न पूछो!
अपनी इस आदत के कारण कितना करते ,
ये नुकसान न पूछो !
यदि ,
होते है ये , आशिक 
तो दिन में सो जाते
घर के किसी, कोने में ,
और सपने  में,
पहुच जाते है,
प्रेमिका के पास,
और सोये रहते ,
उसके आगोश में !
इतने में ,
पतनी की सुनकर ,
फटकर ,
ये आ जाते होस में ,
झट से ये जाते है जाग 
इनके, सुहाने सपनों कितना,
होता उत्पन्न,
व्याधान,
न पूछो!
दिन में सोने वालो का बस हाल न पूछो!
अपनी इस आदत के कारण कितना करते ,
ये नुकसान न पूछो !

यदि,
होते है ,ये इंटरनेट के कीड़े,
तो दिन में घंटो सोकर ,
रात में बैठे, रहते नेट पर,
पतनी से कर ,काम का 
बहाना, बाते करते है ,
लडकियों से, चैटिंग पर  
पकड़े जाने पर, पतनी के 
घर में कितना होता ,
घमाशान,
न पूछो ! 

दिन में सोने वालो का बस हाल न पूछो!
अपनी इस आदत के कारण कितना करते ,
ये नुकसान न पूछो !

......आपका यशपाल सिंह 

बुधवार, 24 अगस्त 2011

मुझे हक नही ,


मुझे  हक नही ,
कि मैं आज भी,
 आपको
अपना कहू ,
अब वो सम्मा
बुझ चुकी, 
परवाना भी जल  गया  !
शुआत हो चुकी,
पतझड़ की,
फूल कहाठरते ,
जब  कोई, 
पत्ते ही नही  रहा !

मुझे  हक नही ,
कि, मैं आज भी,
 आपको
अपना कहू ,

सूख 
गया  वो  बरगद ,जिसके नीचे 
हम मिला करते थे हम 
तन्हाई में अक्सर ,
लकड़ी 
ले गयी 
बीनने वाली 
जला दी चुल्ल्हे  
में 
घर ले जाकर!

मुझे  हक नही ,
कि, मैं आज भी,
 आपको
अपना कहू ,

शांत हुआ वो,
प्यार की
लहरों
का 
उफान,
और अब पानी
है शांत
डूब गयी
वो
ख्वाबो की 
किस्ती 
जिस पर हम करते थे मस्ती !
नही रहा   खिव्य्या,
न बचा पतवार,
बस प्यार के ,
अवशेष 
रह गये 
यार !

मुझे  हक नही ,
कि, मैं आज भी,
 आपको
अपना कहू ,

या
आपके दिल  में ,
रहू
आप हो गये किसी और 
के 
और हमारा कोई 
हो गया!

........यशपाल सिंह 


एक बारिश है


कभी बारिश बरसती है तो मुझको याद आता है
वो अक्सर मुझसे कहता था
मोहब्बत एक बारिश है
सभी पर जो बरसती है
मगर फिर भी नही होती ये सब के वास्ते यकसा
किसी के वास्ते राहत , किसी के वास्ते ज़हमत
मई अक्सर सोचता हूँ अब
वो मुझसे ठीक कहता था
मोहब्बत एक बारिश है
सभी पर जो बरसती है
कभी मुझ पर बरसती थी
मगर मेरे लिए बारिश कभी न बन सकी राहत
ये राहत क्यूँ नही बनती
कभी मैं खुद से पूछूँ तो ये दिल देता दुहाई है
कभी कच्चे मकानों को भी बारिश रास आई है ?

सोमवार, 22 अगस्त 2011

औरतें


औरतें –
मनाती हैं उत्सव
दीवाली, होली और छठ का
करती हैं घर भर में रोशनी
और बिखेर देती हैं कई रंगों में रंगी
खुशियों की मुस्कान
फिर, सूर्य देव से करती हैं
कामना पुत्र की लम्बी आयु के लिए।
औरतें –
मुस्कराती हैं
सास के ताने सुनकर
पति की डाँट खाकर
और पड़ोसियों के उलाहनों में भी।

औरतें –
अपनी गोल-गोल
आँखों में छिपा लेती हैं
दर्द के आँसू
हृदय में तारों-सी वेदना
और जिस्म पर पड़े
निशानों की लकीरें।
औरतें 


औरतें –
बना लेती हैं
अपने को गाय-सा
बँध जाने को किसी खूँटे से।

औरतें –
मनाती है उत्सव
मुर्हरम का हर रोज़
खाकर कोड़े
जीवन में अपने।

औरतें –
मनाती हैं उत्सव
रखकर करवाचौथ का व्रत
पति की लम्बी उम्र के लिए
और छटपटाती हैं रात भर
अपनी ही मुक्ति के लिए।

औरतें –
मनाती हैं उत्सव
बेटों के परदेस से
लौट आने पर
और खुद भेज दी जाती हैं
वृद्धाश्रम के किसी कोने में।

रविवार, 21 अगस्त 2011

चींटियाँ

चढ़ रही हैं लगातार
दीवार पर बार-बार
आ रही हैं
जा रहीं हैं
कतारबद्ध चींटियाँ

ढो रही हैं अपने घर का साजो-सामान
एक नए घर में
आशा और उम्मीद के साथ
गाती हुई
ज़िन्दगी का खूबसूरत तराना
इकट्ठी करती हुई
ज़रुरत की छोटी से छोटी
और बड़ी से बड़ी चीज़
बनाती हुई गति और लय को
अपनी जिंदगी का एक खास हिस्सा

अपने घर से
विस्थापित होती हुई चींटियाँ
चल देती हैं नए ठिए कि तलाश में
किसी भी शिकवा शिकायत के बग़ैर

पुराने घर की दीवारों से गले लगकर
रोती हैं चींटियाँ
बहाती नहीं हैं पर आँसू
दिखाती नहीं हैं आक्रोश
प्रकट नहीं करती हैं गुस्सा
जानती हैं फिर भी प्रतिरोध की ताक़त

मेहनत की क्यारी में खिले फूलों की सुगँध
सूँघती हैं चींटियाँ
सीखा नहीं है उन्होंने
हताश होना
ठहरना कभी
मुश्किल से मुश्किल समय में भी
उखड़ती नहीं है उनकी साँस
मसल दिए जाने के बाद भी
उठ खड़ी होती हैं चींटियाँ
लगे होते हैं उनके पैरों में डायनमो
चलते रहने के लिए
बढ़ने के लिए आगे ही आगे
पढ़ती हुई हर ख़तरे को
जूझती हैं चींटियाँ

जानती हैं वो आज़माना
मुठ्ठियों की ताक़त को एक साथ!!

शुक्रवार, 19 अगस्त 2011

क्या होगा जन लोकपाल विधेयक से?


आखिरकार विश्व के इस सबसे बड़े लोकतंत्र में “लोक” को ही भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज़ उठानी पड़ी. माननीय अन्ना हजारे जी इसके अगुआ बने और उनको अपार जनसमर्थन भी मिल रहा है. वास्तव में देखा जाए तो स्वतन्त्रता प्राप्ति के उपरान्त सत्ताधीशों ने इस राष्ट्र के संसाधनों का दोहन अपने लिए किया न की राष्ट्र के लिए, जनता के लिए. विश्व के इस सबसे बड़े “लोकतंत्र” में “लोक” ही सबसे ज्यादा उपेक्षित है, इस सबसे बड़े “गणतंत्र” के “गण” को ही गौण बना दिया गया है. हमारे राजनीतिज्ञों ने भी अंग्रेजों की निति “फूट डालो और राज करो” का अनुशरण करते हुए पूरे राष्ट्र को अलग अलग समुदायों में बाँट दिया. जिससे उनकी स्वार्थसिद्धि आसानी के साथ होती रहे. परिणामस्वरुप इस राष्ट्र के नागरिक अपने अपने स्वार्थों को वरीयता देने लगे और राष्ट्रीय हित गौण होते चले गए. भ्रष्टाचार बढ़ता गया.क्या ये आश्चर्यजनक और शर्मनाक नहीं है की जनता को सरकार के समक्ष भ्रष्टाचार के विरुद्ध क़ानून बनवाने लिए अनशन करना पड़ रहा है और सरकार उस पर भी सोच रही है, विचार कर रही है, समितियां बना रही है इस विषय को खिंच रही तत्परता से कोई कार्यवाही नहीं. यदि कोई व्यक्ति राष्ट्रीय विषय के सन्दर्भ में भूखा सो रहा है तो ये कहाँ तक उचित है और उस सरकार का नैतिक दायित्व क्या है? यदि किसी सरकार के समक्ष “भ्रष्टाचार के विरुद्ध कार्यवाही करने को लेकर” बात मनवाने के वहां की जनता को भूखा रहना पड़ रहा है तो सरकार को बने रहने का कितना अधिकार है. लेकिन इस गणतंत्र में सब हो रहा है ढिठाई के साथ. बिल्लियाँ स्वयं बैठी हैं दूध की रखवाली के लिए तो दूध कैसे सुरक्षित रहेगा. भ्रष्टाचारी स्वयं के विरुद्ध क़ानून कैसे बनायें.


ऐसा नहीं है की ये भ्रष्टाचार के विरुद्ध पहली बार कोई आवाज़ उठाई गयी है. पूर्व में, जयप्रकाश नारायण ने भी भ्रष्टाचार के विरुद्ध आन्दोलन चलाया था और वो तत्कालीन सत्ताधीशों को परिवर्तित करने में सफल भी रहे, परन्तु क्या भ्रष्टाचार समाप्त हुआ? शायद नहीं क्यों? तो क्या हो जाएगा एक और क़ानून बनाने से?

लोकतंत्र के चार स्तम्भ होते हैं विधायिका, न्यायपालिका, कार्यपालिका और प्रेस. क्या हमारे देश में इन सबने अपने दायित्वों का निर्वाहन ठीक ढंग से किया है,यदि नहीं तो इसकी जवाबदेही किस पर है और यदि हाँ तो इतनी अराजकता कैसे? लोकतंत्र की क्या आवश्यकता है.  क्या इस देश में किसी की भी कोई जवाबदेही है? किसी भी स्तर पर किसी भी कर्मचारी सरकारी अथवा गैर सरकारी, व्यवसायी,  अथवा नेता और समस्त नागरिक सबको अपने अधिकारों का तो भान है पर किसी को अपने कर्तव्यों ज्ञान है? इन सबकी अपने अपने विभाग अथवा देश के प्रति क्या जवाबदेहि है. यदि कोई नहीं तो भूल जाइए की किसी भी क़ानून से भ्रष्टाचार कम हो जाएगा. कानूनों की तो इस देश में वैसे भी कोई कमी नहीं है. नए पुराने बहुत तरह के क़ानून हैं.  पर क्या हुआ उन कानूनों से क्या दहेज़ खत्म हो गया, या आतंकवाद ख़त्म हो गया, जब तक हर व्यक्ति राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों को लेकर सजग नहीं होगा और जवाबदेही निश्चित नहीं होगी तब तक किसी भी आन्दोलन का कोई प्रभाव होगा कहना मुश्किल है.

मैं माननीय अन्ना  हजारे जी का विरोध नहीं कर रहा हूँ, जबकि मेरा मानना है की जिस भ्रष्टाचार के विरोध में उन्होंने कमर कसी है उस में केवल क़ानून बनाने से कुछ नहीं होगा साथ ही साथ सबकी जवाबदेही भी निश्चित कर दी जाए तो ज्यादा ठीक होगा.  

वास्तव में देखा जाए तो इन सब बातों के मूल फिर से वही हमारी शिक्षा पद्धति का दोष…..! अब शिक्षा में नैतिकता की बातों को वरीयता नहीं दी जाती और न ही अपने पूर्वजों  महापुरुषों के विषय में जानकारी दी जाती है जिसके कारण लोगों के समक्ष अब कोई आदर्श नहीं हैं  जब अपने ही राष्ट्र के महापुरुषों के विषय में पढाये जाने पर भगवाकरण की बात कही जाती हो, अपने ही महापुरूषों के विषय में पढने पर शर्म महसूस की जाती हो तो भला किसी का कोई आदर्श कैसे हो सकता है आदमी सैद्धांतिक कैसे हो सकता है, और गांधीजी ने कहा ही था की “आदर्श रहित मनुष्य पतवार रहित जहाज के समान है” जो कभी भी डगमगा सकता है. और इस सबका एक ही समाधान है शिक्षा पद्धति में सुधार और व्यक्तियों के चरित्र निर्माण को महत्व दिया जाए न की व्यवसायिक शिक्षा को. केवल उच्च चरित्र से ही एक सशक्त राष्ट्र का निर्माण संभव है अन्यथा एक और क़ानून तो बन जाएगा परन्तु उसकी क्या उपयोगिता रहेगी या उसका दुरपयोग नहीं होगा कहना मुश्किल है. इसलिए चरित्र निर्माण कीजिये व्यक्ति निर्माण कीजिये जिससे किसी को अन्ना  हजारे जी की तरह अनशन पर न बैठना पड़े और किसी लोकतंत्र के इतिहास में ऐसा काला दिन न आये

क्या है जन लोकपाल बिल


कुछ जागरूक  नागरिकों द्वारा शुरू की गई एक पहल का नाम है 'जन लोकपाल बिल'. इस कानून के अंतर्गत, केंद्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त का गठन होगा. जस्टिस संतोष हेगड़े, प्रशांत भूषण और अरविन्द केजरीवाल द्वारा बनाया गया यह विधेयक लोगो के द्वारा वेबसाइट पर दी गयी प्रतिक्रिया और जनता के साथ विचार विमर्श के बाद तैयार किया गया है. यह संस्था निर्वाचन आयोग और सुप्रीम कोर्ट की तरह सरकार से स्वतंत्र होगी. कोई भी नेता या सरकारी अधिकारी जांच की प्रक्रिया को प्रभावित नहीं कर पायेगा. इस बिल को शांति भूषण, जे. एम. लिंगदोह, किरण बेदी, अन्ना हजारे आदि का भारी समर्थन प्राप्त हुआ है.

इस बिल की मांग है कि भ्रष्टाचारियो  के खिलाफ किसी भी मामले की जांच एक साल के भीतर पूरी की जाये. परिक्षण एक साल के अन्दर पूरा होगा और दो साल के अन्दर ही भ्रष्ट नेता व आधिकारियो को सजा सुनाई जायेगी . इसी के साथ ही भ्रष्टाचारियो का अपराध सिद्ध होते ही उनसे सरकर को हुए घाटे की वसूली भी  की जाये. यह बिल एक आम नागरिक के लिए मददगार जरूर साबित होगा, क्यूंकि यदि किसी नागरिक का काम तय समय में नहीं होता तो लोकपाल बिल दोषी अफसर पर जुरमाना लगाएगा और वह जुरमाना शिकायत कर्ता को मुआवजे के रूप में मिलेगा. इसी के साथ अगर आपका राशन कार्ड, मतदाता पहचान पत्र, पासपोर्ट आदि तय समय के भीतर नहीं बनता है या पुलिस आपकी शिकायत दर्ज नहीं करती है तो आप इसकी शिकायत लोकपाल से कर सकते है.  आप किसी भी तरह के भ्रष्टाचार की शिकायत लोकपाल से कर सकते है जैसे कि सरकारी राशन में काला बाजारी, सड़क बनाने में गुणवत्ता की अनदेखी,  या फिर पंचायत निधि का  दुरूपयोग.

लोकपाल के सदस्यों  का चयन जजों, नागरिको और संवैधानिक संस्थायो द्वारा किया जायेगा. इसमें कोई भी नेता की कोई भागीदारी नहीं होगी.  इनकी नियुक्ति पारदर्शी तरीके से, जनता की भागीदारी से होगी.
सीवीसी, विजिलेंस विभाग, सी बी आई  की भ्रष्टाचार निरोधक विभाग (ऐन्टी करप्शन डिपार्ट्मन्ट) का लोकपाल में विलय कर दिया जायेगा. लोकपाल को किसी जज, नेता या अफसर के खिलाफ जांच करने व मुकदमा चलाने के लिए पूर्ण अधिकार प्राप्त होंगें.

इस बिल की प्रति प्रधानमंत्री एवं सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को १ दिसम्बर २०१० को भेजी गयी थी, जिसका अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है. 

खास है जन लोकपाल विधेयक:


• अध्यक्ष समेत दस सदस्यों वाली एक लोकपाल संस्था होनी चाहिए.
• भ्रष्टाचार के मामलों की जांच करने वाली सीबीआइ के हिस्से को इस लोकपाल में शामिल कर दिया जाना चाहिए.
• सीवीसी और विभिन्न विभागों में कार्यरत विजिलेंस विंग्स का लोकपाल में विलय कर दिया जाना चाहिए.
• लोकपाल सरकार से एकदम स्वतंत्र होगा.
• नौकरशाह, राजनेता और जजों पर इनका अधिकार क्षेत्र होगा.
• बगैर किसी एजेंसी की अनुमति के ही कोई जांच शुरू करने का इसे अधिकार होगा.
• जनता को प्रमुख रूप से सरकारी कार्यालयों में रिश्वत मांगने की समस्या से गुजरना पड़ता है। लोकपाल एक.
• अपीलीय प्राधिकरण और निरीक्षक निकाय के तौर पर केंद्र सरकार के सभी कार्यालयों में कार्रवाई कर सकेगा.
• विसलब्लोअर को संरक्षण प्रदान करेगा.
• लोकपाल के सदस्यों और अध्यक्ष का चुनाव पारदर्शी तरीके से किया जाना चाहिए.
• लोकपाल के किसी अधिकारी के खिलाफ यदि कोई शिकायत होती है तो उसकी जांच पारदर्शी तरीके से एक महीने की भीतर होनी चाहिए.


जन लोकपाल की खूबियां और सरकारी प्रारूप में खामियां
विषय: राजनेता, नौकरशाह और न्यायपालिका पर अधिकार क्षेत्र
सरकारी विधेयक: सीवीसी का अधिकार क्षेत्र नौकरशाहों और लोकपाल का राजनेताओं
पर। न्यायपालिका पर कोई कानून नहीं
जन लोकपाल: राजनेता, नौकरशाह व न्यायपालिका दायरे में
क्यों?: भ्रष्टाचार राजनेता और नौकरशाहों की मिलीभगत से ही होता है। ऐसे में सीवीसी और लोकपाल को अलग अधिकार क्षेत्र देने से इन मामलों को व्यवहारिक दृष्टि से निपटाने में दिक्कतें पेश आएंगी। यदि किसी केस में दोनों संस्थाओं के अलग निष्कर्ष निकलते हैं तो कोर्ट में आरोपी के बचने की आशंका ज्यादा होगी.

विषय: लोकपाल की शक्तियां
सरकारी विधेयक: सलाहकारी निकाय होना चाहिए
जन लोकपाल: किसी की अनुमति के बगैर ही जांच प्रक्रिया शुरू करने का अधिकार होना चाहिए
क्यों?: सलाहकारी भूमिका में यह सीवीसी की तरह अप्रभावी होगा.

विषय: विसलब्लोअर संरक्षण
सरकारी विधेयक: इनकी सुरक्षा के लिए सरकार ने हाल में एक बिल पेश किया है जिसमें सीवीसी को सुरक्षा का उत्तरदायित्व दिया गया है.
जन लोकपाल: सीधे तौर पर इनकी सुरक्षा का प्रावधान
क्यों?: सीवीसी के पास न तो शक्तियां हैं और न ही संसाधन, जो विसलब्लोअर की सुरक्षा करे.

विषय: लोकपाल का चयन और नियुक्ति
सरकारी विधेयक: प्रमुख रूप से सत्ता पक्ष और विपक्ष के सदस्यों से बनी एक कमेटी द्वारा इनका चयन जन लोकपाल: गैर राजनीतिक व्यक्तियों की एक कमेटी द्वारा चयन
क्यों?: कोई भी राजनीतिक पार्टी हो, वह सशक्त और स्वतंत्र लोकपाल नहीं चाहती

विषय: लोकपाल की पारदर्शिता और जवाबदेही
सरकारी विधेयक: कोई प्रावधान नहीं
जन लोकपाल: कार्यप्रणाली पारदर्शी हो। किसी लोकपाल कर्मचारी के खिलाफ शिकयत का निस्तारण एक महीने के भीतर होना चाहिए और दोषी पाए जाने पर उसको बर्खास्त किया जाना चाहिए.

विषय: भ्रष्टाचार मामलों में सरकार को हुए धन की क्षतिपूर्ति
सरकारी विधेयक: कोई प्रावधान नहीं
जन लोकपाल: भ्रष्टाचार के कारण सरकार की हुई किसी भी मात्रा की आर्थिक क्षति का आकलन ट्रायल कोर्ट करेगी और इसकी वसूली दोषियों से की जाएगी.

शनिवार, 13 अगस्त 2011

जन लोकपाल विधेयक


जन लोकपाल विधेयक

जन लोकपाल विधेयक भारत में प्रस्तावित भ्रष्टाचारनिरोधी विधेयक का मसौदा है। यदि इस तरह का विधेयक पारित हो जाता है तो भारत में जन लोकपाल चुनने का रास्ता साफ हो जायेगा जो चुनाव आयुक्त की तरह स्वतंत्र संस्था होगी। जन लोकपाल के पास भ्रष्ट राजनेताओं एवं नौकरशाहों पर बिना सरकार से अनुमति लिये ही अभियोग चलाने की शक्ति होगी। जस्टिस संतोष हेगड़े, प्रशांत भूषण, सामाजिक कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल ने यह बिल जनता के साथ विचार विमर्श के बाद तैयार किया है।

अनुक्रम

 [छुपाएँ]

[संपादित करें]जन लोकपाल विधेयक के मुख्य बिन्दु

  • इस कानून के तहत केंद्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त का गठन होगा।
  • किसी भी मुकदमे की जांच एक साल के भीतर पूरी होगी। ट्रायल अगले एक साल में पूरा होगा।
  • भ्रष्ट नेता, अधिकारी या जज को 2 साल के भीतर जेल भेजा जाएगा।
  • भ्रष्टाचार की वजह से सरकार को जो नुकसान हुआ है अपराध साबित होने पर उसे दोषी से वसूला जाएगा।
  • अगर किसी नागरिक का काम तय समय में नहीं होता तो लोकपाल दोषी अफसर पर जुर्माना लगाएगा जो शिकायतकर्ता को मुआवजे के तौर पर मिलेगा।
  • लोकपाल के सदस्यों का चयन जज, नागरिक और संवैधानिक संस्थाएं मिलकर करेंगी। नेताओं का कोई हस्तक्षेप नहीं होगा।
  • लोकपाल/ लोक आयुक्तों का काम पूरी तरह पारदर्शी होगा। लोकपाल के किसी भी कर्मचारी के खिलाफ शिकायत आने पर उसकी जांच 2 महीने में पूरी कर उसे बर्खास्त कर दिया जाएगा।
  • सीवीसी, विजिलेंस विभाग और सीबीआई के ऐंटि-करप्शन विभाग का लोकपाल में विलय हो जाएगा।
  • लोकपाल को किसी भी भ्रष्ट जज, नेता या अफसर के खिलाफ जांच करने और मुकदमा चलाने के लिए पूरी शक्ति और व्यवस्था होगी।

[संपादित करें]जन लोकपाल बिल की प्रमुख शर्तें

न्यायाधीश संतोष हेगड़ेप्रशांत भूषण और अरविंद केजरीवाल द्वारा बनाया गया यह विधेयक लोगों द्वारा वेबसाइट पर दी गई प्रतिक्रिया और जनता के साथ विचार-विमर्श के बाद तैयार किया गया है। इस बिल को शांति भूषण, जे एम लिंग्दोह, किरण बेदीअन्ना हजारे आदि का समर्थन प्राप्त है। इस बिल की प्रति प्रधानमंत्री और सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को एक दिसम्बर को भेजा गया था।
1. इस कानून के अंतर्गत, केंद्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त का गठन होगा।
2. यह संस्था निर्वाचन आयोग और सुप्रीम कोर्ट की तरह सरकार से स्वतंत्र होगी। कोई भी नेता या सरकारी अधिकारी की जांच की जा सकेगी
3. भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कई सालों तक मुकदमे लम्बित नहीं रहेंगे। किसी भी मुकदमे की जांच एक साल के भीतर पूरी होगी। ट्रायल अगले एक साल में पूरा होगा और भ्रष्ट नेता, अधिकारी या न्यायाधीश को दो साल के भीतर जेल भेजा जाएगा।
4. अपराध सिद्ध होने पर भ्रष्टाचारियों द्वारा सरकार को हुए घाटे को वसूल किया जाएगा।
5. यह आम नागरिक की कैसे मदद करेगा: यदि किसी नागरिक का काम तय समय सीमा में नहीं होता, तो लोकपाल जिम्मेदार अधिकारी पर जुर्माना लगाएगा और वह जुर्माना शिकायतकर्ता को मुआवजे के रूप में मिलेगा।
6. अगर आपका राशन कार्ड, मतदाता पहचान पत्र, पासपोर्ट आदि तय समय सीमा के भीतर नहीं बनता है या पुलिस आपकी शिकायत दर्ज नहीं करती तो आप इसकी शिकायत लोकपाल से कर सकते हैं और उसे यह काम एक महीने के भीतर कराना होगा। आप किसी भी प्रकार के भ्रष्टाचार की शिकायत लोकपाल से कर सकते हैं जैसे सरकारी राशन की कालाबाजारी, सड़क बनाने में गुणवत्ता की अनदेखी, पंचायत निधि का दुरुपयोग। लोकपाल को इसकी जांच एक साल के भीतर पूरी करनी होगी। सुनवाई अगले एक साल में पूरी होगी और दोषी को दो साल के भीतर जेल भेजा जाएगा।
7. क्या सरकार भ्रष्ट और कमजोर लोगों को लोकपाल का सदस्य नहीं बनाना चाहेगी? ये मुमकिन नहीं है क्योंकि लोकपाल के सदस्यों का चयन न्यायाधीशों, नागरिकों और संवैधानिक संस्थानों द्वारा किया जाएगा न कि नेताओं द्वारा। इनकी नियुक्ति पारदर्शी तरीके से और जनता की भागीदारी से होगी।
8. अगर लोकपाल में काम करने वाले अधिकारी भ्रष्ट पाए गए तो? लोकपाल / लोकायुक्तों का कामकाज पूरी तरह पारदर्शी होगा। लोकपाल के किसी भी कर्मचारी के खिलाफ शिकायत आने पर उसकी जांच अधिकतम दो महीने में पूरी कर उसे बर्खास्त कर दिया जाएगा।
9. मौजूदा भ्रष्टाचार निरोधक संस्थानों का क्या होगा? सीवीसी, विजिलेंस विभाग, सीबीआई की भ्रष्टाचार निरोधक विभाग (अंटी कारप्शन डिपार्टमेंट) का लोकपाल में विलय कर दिया जाएगा। लोकपाल को किसी न्यायाधीश, नेता या अधिकारी के खिलाफ जांच करने व मुकदमा चलाने के लिए पूर्ण शक्ति और व्यवस्था भी होगी।

[संपादित करें]सरकारी बिल और जनलोकपाल बिल में मुख्य अंतर

सरकारी लोकपाल के पास भ्रष्टाचार के मामलों पर ख़ुद या आम लोगों की शिकायत पर सीधे कार्रवाई शुरु करने का अधिकार नहीं होगा. सांसदों से संबंधित मामलों में आम लोगों को अपनी शिकायतें राज्यसभा के सभापति या लोकसभा अध्यक्ष को भेजनी पड़ेंगी. वहीं प्रस्तावित जनलोकपाल बिल के तहत लोकपाल ख़ुद किसी भी मामले की जांच शुरु करने का अधिकार रखता है. इसमें किसी से जांच के लिए अनुमति लेने की ज़रूरत नहीं है सरकार द्वारा प्रस्तावित लोकपाल को नियुक्त करने वाली समिति में उपराष्ट्रपति. प्रधानमंत्री, दोनो सदनों के नेता, दोनो सदनों के विपक्ष के नेता, क़ानून और गृह मंत्री होंगे. वहीं प्रस्तावित जनलोकपाल बिल में न्यायिक क्षेत्र के लोग, मुख्य चुनाव आयुक्त, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, भारतीय मूल के नोबेल और मैगासेसे पुरस्कार के विजेता चयन करेंगे ।

[संपादित करें]राज्यसभा के सभापति या स्पीकर से अनुमति

सरकारी लोकपाल के पास भ्रष्टाचार के मामलों पर ख़ुद या आम लोगों की शिकायत पर सीधे कार्रवाई शुरु करने का अधिकार नहीं होगा. सांसदों से संबंधित मामलों में आम लोगों को अपनी शिकायतें राज्यसभा के सभापति या लोकसभा अध्यक्ष को भेजनी पड़ेंगी.वहीं प्रस्तावित जनलोकपाल बिल के तहत लोकपाल ख़ुद किसी भी मामले की जांच शुरु करने का अधिकार रखता है. इसमें किसी से जांच के लिए अनुमति लेने की ज़रूरत नहीं है.सरकारी विधेयक में लोकपाल केवल परामर्श दे सकता है. वह जांच के बाद अधिकार प्राप्त संस्था के पास इस सिफ़ारिश को भेजेगा. जहां तक मंत्रीमंडल के सदस्यों का सवाल है इस पर प्रधानमंत्री फ़ैसला करेंगे. वहीं जनलोकपाल सशक्त संस्था होगी. उसके पास किसी भी सरकारी अधिकारी के विरुद्ध कार्रवाई की क्षमता होगी.सरकारी विधेयक में लोकपाल के पास पुलिस शक्ति नहीं होगी. जनलोकपाल न केवल प्राथमिकी दर्ज करा पाएगा बल्कि उसके पास पुलिस फ़ोर्स भी होगी.सरकारी विधेयक में लोकपाल केवल परामर्श दे सकता है. वह जांच के बाद अधिकार प्राप्त संस्था के पास इस सिफ़ारिश को भेजेगा. जहां तक मंत्रीमंडल के सदस्यों का सवाल है इस पर प्रधानमंत्री फ़ैसला करेंगे. वहीं जनलोकपाल सशक्त संस्था होगी. उसके पास किसी भी सरकारी अधिकारी के विरुद्ध कार्रवाई की क्षमता होगी.सरकारी विधेयक में लोकपाल के पास पुलिस शक्ति नहीं होगी. जनलोकपाल न केवल प्राथमिकी दर्ज करा पाएगा बल्कि उसके पास पुलिस फ़ोर्स भी होगी

[संपादित करें]अधिकार क्षेत्र सीमित

अगर कोई शिकायत झूठी पाई जाती है तो सरकारी विधेयक में शिकायतकर्ता को जेल भी भेजा जा सकता है. लेकिन जनलोकपाल बिल में झूठी शिकायत करने वाले पर जुर्माना लगाने का प्रावधान है.
सरकारी विधेयक में लोकपाल का अधिकार क्षेत्र सांसद, मंत्री और प्रधानमंत्री तक सीमित रहेगा. जनलोकपाल के दायरे में प्रधानमत्री समेत नेता, अधिकारी, न्यायाधीश सभी आएँगे.
लोकपाल में तीन सदस्य होंगे जो सभी सेवानिवृत्त न्यायाधीश होंगे. जनलोकपाल में 10 सदस्य होंगे और इसका एक अध्यक्ष होगा. चार की क़ानूनी पृष्टभूमि होगी. बाक़ी का चयन किसी भी क्षेत्र से होगा.

[संपादित करें]चयनकर्ताओं में अंतर

सरकार द्वारा प्रस्तावित लोकपाल को नियुक्त करने वाली समिति में उपराष्ट्रपति. प्रधानमंत्री, दोनो सदनों के नेता, दोनो सदनों के विपक्ष के नेता, क़ानून और गृह मंत्री होंगे. वहीं प्रस्तावित जनलोकपाल बिल में न्यायिक क्षेत्र के लोग, मुख्य चुनाव आयुक्त, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, भारतीय मूल के नोबेल और मैगासेसे पुरस्कार के विजेता चयन करेंगे.लोकपाल की जांच पूरी होने के लिए छह महीने से लेकर एक साल का समय तय किया गया है. प्रस्तावित जनलोकपाल बिल के अनुसार एक साल में जांच पूरी होनी चाहिए और अदालती कार्यवाही भी उसके एक साल में पूरी होनी चाहिए.
सरकारी लोकपाल विधेयक में नौकरशाहों और जजों के ख़िलाफ़ जांच का कोई प्रावधान नहीं है. लेकिन जनलोकपाल के तहत नौकरशाहों और जजों के ख़िलाफ़ भी जांच करने का अधिकार शामिल है. भ्रष्ट अफ़सरों को लोकपाल बर्ख़ास्त कर सकेगा.

[संपादित करें]सज़ा और नुक़सान की भरपाई

सरकारी लोकपाल विधेयक में दोषी को छह से सात महीने की सज़ा हो सकती है और धोटाले के धन को वापिस लेने का कोई प्रावधान नहीं है. वहीं जनलोकपाल बिल में कम से कम पांच साल और अधिकतम उम्र क़ैद की सज़ा हो सकती है. साथ ही धोटाले की भरपाई का भी प्रावधान है.
ऐसी स्थिति मे जिसमें लोकपाल भ्रष्ट पाया जाए, उसमें जनलोकपाल बिल में उसको पद से हटाने का प्रावधान भी है. इसी के साथ केंद्रीय सतर्कता आयुक्त, सीबीआई की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा सभी को जनलोकपाल का हिस्सा बनाने का प्रावधान भी है.

[संपादित करें]इन्हें भी देखें

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बुधवार, 3 अगस्त 2011

उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन और भूमि की धारा 143 सुधार 1950 अधिनियम

उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन और भूमि की धारा 143 सुधार 1950 अधिनियम औद्योगिक या आवासीय प्रयोजन के लिए पकड़ का प्रयोग करें 1 कहां हस्तांतरणीय अधिकारों के साथ एक Bhumidhar अपनी होल्डिंग या भाग का उपयोग करता है के लिए उसके कृषि, बागवानी, या पशुपालन के साथ एक उद्देश्य नहीं जुड़ा जिसमें मछली पालन और मुर्गीपालन, सहायक उप - विभाजन हो सकता है के कलेक्टर - प्रभारी, स्वप्रेरणा से या एक आवेदन पर है, जैसे करने के बाद जाँच के रूप में निर्धारित किया जा सकता है कि प्रभाव के लिए एक घोषणा करने. (1 ए) जहां उपधारा (1) के अधीन घोषणा के संबंध में किया जाना है , सहायक उप - विभाजन हो सकता है के कलेक्टर में आरोप में आयोजन का हिस्सा ढंग से निर्धारित है, इस तरह के प्रयोजनों के लिए इस तरह के भाग हदबंदी घोषणा. उप धारा (1) में उल्लेख किया है की घोषणा की अनुदान का प्रावधान करने पर 2 इस अध्याय (इस अनुभाग के अलावा अन्य) के साथ Bhumidhar करने के लिए लागू रहेगा ऐसी भूमि के लिए सम्मान के साथ हस्तांतरणीय अधिकार और वह इस के बाद किया जाएगा भूमि के हस्तांतरण के मामले में निजी कानून द्वारा शासित करने के लिए जो है वह विषय. 3 कहाँ हस्तांतरणीय अधिकारों के साथ एक bhumidhar प्रदान किया गया है से पहले या बाद उत्तर प्रदेश भूमि कानून के प्रारंभ (संशोधन) अधिनियम 1978, उत्तर प्रदेश वित्तीय निगम द्वारा या किसी अन्य निगम द्वारा किसी भी ऋण स्वामित्व या राज्य सरकार द्वारा नियंत्रित है, किसी भी देश की सुरक्षा पर आयोजित ऐसे Bhumidhar द्वारा, इस अध्याय के उपबंधों (इस अनुभाग के अलावा अन्य) करेगा ऐसी भूमि के लिए सम्मान के साथ इस तरह के Bhumidhar लागू संघर्ष और वह करेगा भूमि के हस्तांतरण के मामले में इस के बाद व्यक्तिगत कानून द्वारा शासित हो जो वह विषय है. सार 1. विधान परिवर्तन 12. आवासीय भवन 2. 13 सारांश. भूमि 3. राज्य द्वारा बनाए गए नियमों सरकार 14. जाँच और भूमि का सीमांकन 4. इस अनुभाग के आवेदन Bhumidhar 15. धारा 143 और संदर्भ 5. समेकन के क्षेत्राधिकार गैर कृषि भूमि पर न्यायालय 16. धारा 143 और धारा 191 - अंतर 6. घोषणा - अनुदान विधिक्षेत्र की 17. जुल्फिकार अली अधिनियम के अध्याय एक्स के लिए आवेदन धारा 143 के तहत कवर भूमि. 7. घोषणा के लिए कौन लागू कर सकते हैं 18. धारा 331 - ए अर्थ, में प्रयोग किया जाता धारित की 8. अनुसार हस्तांतरण घोषणा 19. 9 प्रक्रिया. घोषणा का प्रभाव 20. (1) उप - वर्गों, (2) और (3) - घेरा की 10. घोषणा 21 के प्रयोजन. औद्योगिक प्रयोजन 11. निजी कानून द्वारा हस्तांतरण 1. विधान परिवर्तन - मूल उपधारा (1) "(1) एक bhumidhar था, जो अपने जोत या उसका एक हिस्सा औद्योगिक या आवासीय प्रयोजनों के लिए उपयोग करता है एक घोषणा के लिए सहायक उप प्रभाग के कलेक्टर में प्रभारी के लिए applyt प्रभाव, और सहायक पर करेगा कलेक्टर के उप प्रभाग के प्रभारी ऐसी जांच करने के बाद संतुष्ट किया जा रहा है के रूप में वह आवश्यक समझे, कर सकते हैं तदनुसार घोषणा. " इस उप खंड उसी उप धारा और उपधारा (1 - ए) किया गया था द्वारा प्रस्तुत किया गया था UPAmending अधिनियम, 1958 के XXXVII की धारा 32 द्वारा जोड़ा गया. UPAmending अधिनियम XVI के 1953 के धारा 33 के द्वारा उप धारा (1) शब्दों उप प्रभाग के सहायक कलेक्टर में प्रभारी "के लिए रख दिए गए" "कलेक्टर. हस्तांतरणीय अधिकार के साथ शब्द Bhumidhar बाद में जोड़ा गया है कि वे जहाँ भी उप वर्गों (1) में होते हैं और (2) 24 UPAct द्वारा 1986 की. Upland कानून के 2 धारा (संशोधन) (उत्तर प्रदेश अधिनियम 1978 के No.6) अधिनियम तक उप धारा (3) को सम्मिलित किया गया है. 2. सारांश - अधिनियम की धारा 142 प्रदान करता है कि एक bhumidhar का अधिकार है किसी भी उद्देश्य के लिए अपनी भूमि का उपयोग करें. यह सही bhumidhar करने के लिए अजीब हैअकेले. वह एक के साथ जुड़े नहीं प्रयोजन के लिए अपनी जोत या उसके भाग का उपयोग कर सकते हैं कृषि, बागवानी, या पशुपालन आदि, और बदले के लिए उपयोग कर सकते हैं औद्योगिक या आवासीय प्रयोजन. जब देश में इस तरह के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है प्रयोजनों, सहायक उप विभाजन हो सकता है के प्रभारी कलेक्टर, स्वतः moto या एक आवेदन करने के बाद कि प्रभाव के लिए किसी भी जांच घोषणा. ऐसी घोषणा का परिणाम है कि ऐसी भूमि के द्वारा शासित नहीं रहता इस अधिनियम के प्रावधानों के इस अनुभाग द्वारा छोड़कर. एक अन्य परिणाम यह है कि ऐसा है सीमांकन भूमि हस्तांतरण का मामला व्यक्तिगत कानून द्वारा शासित है तो वह विषय है जो. 3. राज्य सरकार द्वारा बनाए गए नियमों: - नियम 135 (1) धारा 143 के तहत एक bhumidhar द्वारा किए गए आवेदन पर या पर तथ्यों ने अपने नोटिस में अन्यथा आने के सहायता के कलेक्टर में प्रभारी उप divison जांच तहसीलदार या किसी अन्य माध्यम से किया जा रहा है कारण हो सकता है अधिकारी एक पर्यवेक्षक Kanungo के thye नहीं नीचे के प्रयोजन के लिए, रैंक खुद को संतोषजनक है कि bhumidhar पकड़े या उसका एक हिस्सा वास्तव में एक उद्देश्य के लिए कृषि, बागवानी, या जानवर के साथ जुड़ा नहीं किया जा रहा है जो पालन मछली पालन और मुर्गीपालन शामिल है. जांच किया जाएगा हाजिर और जांच अधिकारी पर बना है, के साथ अपनी रिपोर्ट भी प्रस्तुत करेगा प्रोफार्मा में जानकारी नीचे दी गई: - (2) जहां कार्यवाही उप प्रभाग के कलेक्टर के प्रभारी अपनी स्वयं की गति पर सहायक द्वारा शुरू किया गया है वह नोटिस जारी करेगा Bhumidhar चिंतित. अन्यथा वह भी उसके होने का एक मौका देना होगा मामले में एक निर्णय के आने से पहले सुना है. का क्षेत्र 
पकड़े के लिए इस्तेमाल किया nonagricultural प्रयोजन नाम की गांव का नाम Bhumidhar साथ पितृत्व और निवास खाता Kahatuni संख्या का क्षेत्र 
पकड़े भूमि राजस्व भूखंड नहीं. (क) क्षेत्र (ख) 
विशिष्ट nonagricultural उपयोग करने के लिए जो जोत या हिस्सा तत्संबंधी है देना टिप्पणी 1 3 2 5 4 6 7 8 9 (3) Bhumidhar के पूरे पकड़े कहाँ गया है एक के लिए उपयोग करने के लिए डाल उद्देश्य कृषि, बागवानी, या पशुपालन के साथ जुड़ा नहीं है जो मछली पालन और मुर्गीपालन, सहायक कलेक्टर के प्रभारी भी शामिल है उप प्रभाग कि प्रभाव के लिए एक घोषणा कर सकते हैं. (4) Bhumidhar के आयोजन का ही हिस्सा है कहाँ गया है एक के लिए उपयोग करने के लिए डाल उद्देश्य कृषि, बागवानी, या पशुपालन के साथ जुड़ा नहीं है जो मछली पालन और पॉल्ट्री के सहायक कलेक्टर के प्रभारी खेती में शामिल उप - विभाजन कि तदनुसार प्रभाव के लिए एक घोषणा करने के लिए और कहा मिलेगा हिस्सा मौजूदा सर्वेक्षण नक्शे और वास्तविक उपयोगकर्ता के आधार पर सीमांकन भूमि. (5) उप प्रभाग के सहायक कलेक्टर के प्रभारी और तैयार हो जाएगी रिकॉर्ड पर एक अलग रंग में दिखा नक्शा रखा भूखंडों का उपयोग करने के लिए डाल दिया प्रयोजनों के कृषि, बागवानी, या पशुपालन के साथ जुड़ा हुआ है जो मछली पालन और मुर्गी और जुड़ा इतना नहीं प्रयोजनों के लिए खेती शामिल है. वह भूमि जोत के प्रत्येक भाग के लिए देय राजस्व बांटना जाएगा. भूमि प्रत्येक भाग के लिए देय राजस्व कुल भूमि के लिए एक ही अनुपात में वहन करेगा भाग के मूल्यांकन के रूप में राजस्व के आयोजन की कुल मूल्यांकन करने के लिए भालू किराए पर लागू दरों के आधार पर गणना. एक प्रविष्टि भी आदेश दिया जा जाएगा तदनुसार खतौनी में बनाया जा. (6) सीमांकन की लागत के भू - राजस्व के बकाया के रूप में चिंतित Bhumidhar से एहसास हो जाएगा जब तक यह के दौरान जमा किया गया है कार्यवाही के दौरान. सरकारी कर्मचारियों की सेवाओं के लिए सीमांकन से बाहर ले जाने के लिए प्रतिनियुक्त लागत अनुसार गणना की जाएगी दरों पर काम में लिया गया समय के अनुच्छेद 405 में निर्धारित राजस्व न्यायालय मैनुअल. इतना गणना लागत में जमा किया जाएगा के भुगतान की विविध 9 संग्रह - राजकोष सिर के अंतर्गत "DII दी गई सेवाओं ". 4. Bhumidhar करने के लिए इस अनुभाग के आवेदन - यह इस के आवेदन अनुभाग और घोषणा उसके अधीन बनाए अनुदान कि एक Bhumidhar दो अधिकारों लाभ: (1) उनके पकड़े या भाग का उपयोग करने के लिए तत्संबंधी औद्योगिक या आवासीय प्रयोजनों के लिए, और (2) व्यक्तिगत कानून द्वारा ऐसे सीमांकन भूमि का हस्तांतरण की जो वह है विषय. यह कहा जा सकता है कि लेकिन इस अनुभाग के लिए दो यह द्वारा दी अधिकारों सकता है नहीं होगा इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुरूप हो. यह ध्वनि अजीब है कि जब एक Bhumidhari भूमि औद्योगिक के लिए प्रयोग किया जाता है या किया जाना चाहिए आवासीय प्रयोजनों यह अभी भी Bhumidhari रहेगा. यह Bhumidharu भूमि और है यह Bhumidhari अधिकारों की वजह से है कि Bhumidhari यह इस तरह के लिए उपयोग कर सकते हैं प्रयोजनों. Bhumidhari अधिकार भले ही एक Bhumidhar स्थानान्तरण जारी रहेगा बिक्री के द्वारा या किसी भी अन्य तरीके से दूसरे करने के लिए. यह भी आवश्यक नहीं है कि Bhumidhar औद्योगिक या आवासीय खुद प्रयोजनों के लिए भूमि का उपयोग करना चाहिए. वह एक साथी ले सकता है या पट्टे पर बाहर चलो. वह निर्माण के लिए इसे का पट्टा अनुदान सकता हैउद्देश्यों और भूमि के हस्तांतरण के प्रावधानों द्वारा संचालित किया जाएगा किरायेदार आदि की बेदखली के मामले में संपत्ति अधिनियम, 5. समेकन न्यायालयों की भूमि कहां गैर - कृषि पर विधिक्षेत्र सवाल में क्षेत्र ईंटों बनाने के उद्देश्य के लिए इस्तेमाल किया जा रहा था, यह एक था कृषि और ऐसे क्षेत्र के साथ असंबद्ध उद्देश्य के तहत नहीं आया था अवधि के भूमि और समेकन न्यायालयों कोई निर्णय क्षेत्राधिकार होगा ऐसी भूमि के लिए पार्टियों के अधिकारों पर. Triloki नाथ v. राम गोपाल, 1974 आरडी 5. ऐसे मामले में राजस्व या सिविल कोर्ट के क्षेत्राधिकार होगा. 6. घोषणा - विधिक्षेत्र के अनुदान प्रश्न है कि क्या कुछ भूमि यह कृषि प्रयोजनों के लिए इस्तेमाल किया जा रह एक सिविल न्यायालय के समक्ष उठाया है राजस्व न्यायालय ख़बरदार खंड प्रश्न का उल्लेख करने के लिए बाध्य UPZA की 331 - ए और एल.आर. अधिनियम. विधिक्षेत्र करने के लिए धारा 143 निहित के तहत एक घोषणा अनुदानराजस्व न्यायालय में विशेष रूप से. Magnu अहीर v. महावीर, 1988 आरडी 301 (एचसी). 7. कौन घोषणा - घोषणा के आदेश के लिए धारा 143 के तहत आवेदन कर सकते हैं केवल Bhumidhar खुद के आवेदन पर और पर नहीं बनाया जा सकता है है किसी अन्य व्यक्ति के आवेदन. चन्द्र पाल v. हिंद ईंटें एसोसिएशन, 1989 402 आरडी (BR): 1989 आरआर 302 (BR). 8. हस्तांतरण के अनुसार घोषणा - यह एक विसंगति किया गया है तो एक भूमि का उपयोग कर के रूप में कहा Bhumidhar भी एक ही प्रावधानों के द्वारा शासित होगा विरासत का एक उद्देश्य के लिए भूमि का उपयोग कर के रूप में कृषि के साथ जुड़ा आदि ऐसे प्रावधानों के आवेदन के लिए कोई तर्कसंगत differentia होगा. इसके विपरीत, आवासीय या औद्योगिक उद्देश्यों के लिए Bhumidhar भूमि का उपयोग जैसे एक बहुत ही लंबी अवधि के लिए बंधे भूमि हो सकता है. भूमि के परिवर्तन का कारण हो सकता है प्रत्येक मृतक किरायेदार के वारिस का निर्धारण करने में शर्मिंदगी. यह है इसलिए प्रदान किया गया है कि व्यक्तिगत कानून की ऐसी धारक लागू होगा Bhumidhari अधिकारों. उपयोग के लिए एक के तहत किया जा रहा है भूमि के ऐसे प्रावधानों और संभावनाओं के बावजूद बहुत ही लंबी अवधि यह असंभव नहीं माना जाता था कि भूमि भी couold कृषि और अन्य प्रयोजनों के साथ जुड़ा के लिए अपने पुराने का उपयोग करने के लिए वापस ला सकती है कृषि और धारा 144 के मामले को सरकार जब देश reverts अधिनियमित कृषि प्रयोजनों के लिए आदि 9. घोषणा यह की धारा 143 से प्रभाव है कि जब तक ऐसे समय में दिखाई देगा कि एक घोषणा उपधारा के तहत नहीं दी (2) कि उपधारा में बाहर सेट के परिणामों का पालन नहीं करते है.घोषणा तक Bhumidhar होना जारी है इस अधिनियम के उपबंधों द्वारा शासित है. के लिए एक Bhumidhar वादी द्वारा सूट में किराए के भुगतान न करने की जमीन पर प्रतिवादी के तीन साल के लिए निष्कासन चाहे वह भूमि था के रूप में एक मुद्दा सिविल अदालत में अर्थ के भीतर गठित की अवधि के सहायक उपखंड के कलेक्टर के प्रभारी को भेजा गया था. यह आयोजित किया गया है कि ऐसे मुद्दे पर खोज राशि नहीं couild जबकि भूमि के लिए भूमि नहीं रह धारा 143 के तहत और घोषणा Bhumidhar अधिनियम के प्रावधानों के द्वारा जब तक नियंत्रित किया जाना जारी घोषणा. अलाउद्दीन उर्फ ​​मक्की v. हामिद खान, 1971 160 आरडी (एचसी). अन्य poihnt सिविल कोर्ट के क्षेत्राधिकार के रूप में है. राजस्व अदालत में शक्ति है Bhumidhari भूमि से एक व्यक्ति बेदख़ल. और यह के भीतर भूमि माना जाता है शब्द का अर्थ अधिनियम की धारा 3 (14) के रूप में परिभाषित. झंडा आदि वी. Mithan सिंह, 1969 149 आरडी. 10. घोषणा के प्रयोजन देश तेजी से मशीनीकरण की ओर बढ़ रहा है और औद्योगीकरण और किरायेदारी भूमि भी के लिए machanised हो इरादा है बेहतर उपज और अधिक लाभदायक उपयोग. ये अनुभाग किरायेदारी भूमि खुलती है यह किसी भी उद्देश्य के लिए उपयोग करें. एक सरदार भी Bhumidhari अधिकार प्राप्त कर सकते हैं और अपने डाल किसी भी प्रयोजन के लिए भूमि. इस खंड के अंतर्गत प्रदान की गई घोषणा प्रभाव पड़ता है अलग theland जो के अलावा अन्य प्रयोजनों के लिए इस्तेमाल किया जा करने का इरादा है की स्थापना की कृषि. संपूर्ण भूमि या इसे किसी भी पी [ortion कृषि के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है या आवासीय प्रयोजन. यहाँ भूमि का उपयोग कृषि के रूप में वर्गीकृत किया गया है और औद्योगिक उद्देश्यों के. 11. व्यक्तिगत द्वारा हस्तांतरण कानून सोचा था कि एक Bhumidhar शक्ति दी गई है हस्तांतरण और वसीयत के द्वारा करने के लिए इतने लंबे समय के रूप में भूमि कृषि प्रयोजनों के लिए वह इस अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के अभी तक के आदेश से नियंत्रित होता है प्रयोग किया जाता है उत्तराधिकार इस अधिनियम द्वारा शासित है. लेकिन जब एक उद्देश्य के लिए भूमि प्रयोग किया जाता है कृषि और एक घोषणा के साथ असंबद्ध की धारा 143 के तहत की मांग की अधिनियम वह एक विशेषाधिकार है कि उत्तराधिकार संचालित किया जाएगा द्वारा प्रदान किया गया है इस मामले में, व्यक्तिगत लागू कानून द्वारा. इस तरह के प्रावधान एक दृश्य के साथ किया जाता है कि Bhumidhari भूमि के लिए इस्तेमाल किया जा जारी किया जा सकता है के रूप में यह के लिए किया गया था औद्योगिक उद्देश्यों के. यह हो सकता है कि होल्डिंग के एक हिस्से औद्योगिक के लिए प्रयोग किया जाता है उद्देश्यों और कृषि प्रयोजनों के लिए शेष भूमि. के संबंध में भूमि कृषि भूमि के प्रयोजनों के लिए इस्तेमाल किया द्वारा नियंत्रित किया जाएगा इस अधिनियम के प्रावधानों और औद्योगिक उद्देश्यों के लिए व्यक्तिगत द्वारा इस्तेमाल क्षेत्र के लिए कानून. Bhumidhari भूमि के हस्तांतरण के मामले में इस तरह के परिवर्तन पाया जाता है निर्देशित भूमि का आनंद में एक Bhumidhar सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक एक विकासशील देश में यह बेहतर उपयोग की दिशा में. यह कोई किरायेदार भरता है सहारा अगर वह अपने मन परिवर्तन और यह प्रयोजनों के लिए फिर से इस्तेमाल किया निर्देश और फिर कृषि पूरे बन अधिनियम के प्रावधानों के साथ जुड़ा देश में लागू है. सच में ऐसे किसी भी उद्देश्य के लिए बिना भूमि के उपयोग का अधिकार इसे खोने के डर के स्वामित्व की एक सही है. पाक ईंटों के लिए भूमि का उपयोग कृषि के साथ असंबद्ध उद्देश्य है और जब तक धारा 143 के तहत घोषणा की मांग की है यह अभी भी भीतर भूमि है शब्द की परिभाषा. अलाउद्दीन उर्फ ​​मक्की v. हामिद खान, 1971 193 AWR देखें. एक समान प्रावधान होल्डिंग्स अधिनियम के एकीकरण में भी पाया जाता है क्योंकि अधिनियम आत्म निहित हो इरादा है और समेकन आपरेशन नहीं के दौरान अन्य अदालत मामलों को अपने भीतर विशेष रूप से तय करने का क्षेत्राधिकार मिल गया है क्षेत्राधिकार. कहाँ क्षेत्र समेकन आपरेशन के तहत, कार्यकाल धारक गैर - कृषि उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल किया जा कार्यकाल धारक भूमि इच्छा भूमि गैर कृषि प्रयोजनों के लिए इस्तेमाल किया जा इच्छा केवल इतना di के साथ कर सकते हैं निपटान अधिकारी की अनुमति (एकीकरण). एक बार ऐसे अधिकारी अनुदान अनुमति क्षेत्र के अर्थ के भीतर भूमि नहीं रहेगा शब्द. धारा 5 के परन्तुक स्पष्ट रूप से प्रदान करता है एक कृषि जोत कर सकते हैं कि कृषि प्रयोजनों के लिए इस्तेमाल किया जा. Triloki नाथ v. Rfam गोपाल, 1974 आरडी 5. वहाँ कोई विवाद नहीं है कि एक Bhu8midhar किसी भी प्रयोजन के के लिए भूमि का उपयोग कर सकते हैं किया जा सकता है जो और इस धारा के अधीन घोषणा के अनुदान पर निर्भर नहीं करता 1951 के एक अधिनियम के 1543. एक घोषणा के बिना भी वह इतना उसकी भूमि का उपयोग कर सकते हैं फर्क सिर्फ यह करता है कि उस मामले में हस्तांतरण द्वारा नियंत्रित किया जाएगा अधिनियम के प्रावधानों. अलाउद्दीन उर्फ ​​मक्की ध् हामिद खान, 1971 193 AWR. उत्तर प्रदेश की धारा 59 के तहत घोषणा के लिए एक सूट में किरायेदारी अधिनियम यह पाया गया कि देश में औद्योगिक उद्देश्यों के लिए लिया गया था उदाहरण के मकानों के निर्माण, और एक आटा चक्की और चूने मिल की स्थापना. यह आयोजित किया गया था कि यह भूमि और नहीं था राजस्व अदालत के अधिकार क्षेत्र के लिए उत्तरदायी. फूल चंद v. जगन्नाथ पी.डी. ALJ 1961, 27 (Rev). ग्रोव रोपण के लिए दो भूमि के लिए भूमि उत्तर प्रदेश के तहत नहीं था किरायेदारी अधिनियम.इसलिये वादी में यह वंशानुगत अधिकार हासिल नहीं कर सका. मामले के तथ्यों थे कि भूमि मुख्य रूप से एक घर या दुकान, पक्के या kachcha के निर्माण के लिए दिया गया था या ग्रोव रोपण के लिए या अच्छी तरह से डूब करने के लिए. इस प्रकार भूमि के लिए इस्तेमाल किया जा दिया जा रहा किसी भी उद्देश्य यह भूमि नहीं था. जगन्नाथ पी.डी.. v. Chunki (श्रीमती), ALJ 1959 (Rev) 73. 12. आवासीय इमारत अभिव्यक्ति आवासीय इमारत किसी भी तात्पर्य इमारत है, जो गैर आवासीय भवन है. एक गैर आवासीय इमारत है कि जो केवल व्यवसाय या व्यापार के प्रयोजन के लिए प्रयोग किया जाता है. (श्रीमती) नारायण Kuer v. डॉ. श्री राम जोशी, 1969 652 RCJ. एक bhumidhar का निर्माण करने का अधिकार मिल गया है वह या उसकी भूमि पर मकान निर्माण के लिए भूमि तो चलो सकता है कि एक निर्माण एक पट्टा द्वारा bhumidhar या शब्दों की सहमति के साथ उठाया जा सकता है के रूप में किया जा सकता है पर सहमत हुए. Krishnapasuda v. Dattaraya, आकाशवाणी, 1966 अनुसूचित जाति के 1024. संरचना स्थायी कुछ शामिल है. यह एक आवासीय के रूप में उपयोग के लिए किया जाता है भवन निर्माण या औद्योगिक उद्देश्यों के लिए. न्यूनतम करने के लिए एक खुली भूमि कर बात किसी भी roofed संरचना में इमारत. मो. सामी v. 1957 सावित्री देवी ALJ 435. एक छत बिना दुकान निर्माण नहीं है. Paltandin v. सरदार करम सिंह, 1967 ALJ 395. एक ईंट - भट्ठा एक इमारत नहीं है. Newand राम v. गांव समाज, 1961 आरडी 299, overuling देवी पी.डी.. v घनश्याम दास, 1961 193 ALJ: 1961 366 आरडी, देखें घनश्याम दास v. देवी पीडी, 1966 आरडी 310 (एससी). निवास के उद्देश्य औद्योगिक प्रयोजन से अलग है. इसे बनाने के लिए आवासीय परिसर निवास की एक जगह के रूप में मतलब होना चाहिए शब्द है जो सो रही है, खाना पकाने और भोजन की तरह जीवन की सामान्य गतिविधियों में शामिल है. में एक गैर आवासीय निर्माण के मामले का प्रमुख या प्रमुख उपयोगकर्ता इमारत तय करने के लिए अपने चरित्र का निर्धारण कारक है. सवाल फिर भी एक इमारत लेकिन अब तक जमीन इस्तेमाल किया के उपयोगकर्ता नहीं है किरायेदारी भूमि के रूप में. यह conveivable है कि एक टिन शेड के साथ एक खुली भूमि का इस्तेमाल किया जा सकता है औद्योगिक प्रयोजन के लिए. विनिर्माण कपूर, Nagamanickam का व्यवसाय चेत्तिअर v. Nallakammu Servat (1957) 1 MLJ 182, लकड़ी के लॉग का रूपांतरण बीम में, शबाना आदि, अब्दुल गफूर v. Mushir अली खान, 1969 724 ALJ चावल, उत्तर प्रदेश के Zahur अहमद अब्दुल सत्तार v. राज्य 1965 AIR 326 सभी husking: 1965 375 ALJ, आटे में गेहूं पीसने, बिहारी लाल (श्रीमती) v. Chandrawati आकाशवाणी 1966 सभी 541: 1966 368 ALJ, और लेख में कपास चादरें मोड़ होजरी. जयंती होजरी मिल्स v. उपेंद्र चन्द्र दास, आकाशवाणी 1916 सीएएल 317:59 741 CWN, लेख के निर्माण के उदाहरणों में से कुछ हैं. 13. भूमि भूमि कृषि के लिए संघर्ष नहीं है, इतने लंबे समय के रूप में या यह आयोजित किया जाता है कृषि प्रयोजनों के लिए कब्जा कर लिया है, और यहां तक ​​कि अगर एक Bhumidhar उठाती इस तरह के रूप में उनके द्वारा आयोजित भूमि पर निर्माण, यह कहा नहीं किया जा सकता है कि U.P.Z.A. के प्रावधानों और एल.आर. अधिनियम संघर्ष के लिए एक आवेदन बहां. एक Bhumidhar किसी भी कृषि के अलावा अन्य उद्देश्य के लिए भूमि का उपयोग करें, लेकिन हो सकता है तो एक लंबे समय धारा 143 के तहत घोषणा उसके द्वारा प्राप्त नहीं है, यह हो रहा है U.P.Z.A. के उपबंधों द्वारा शासित और एल.आर. अधिनियम. वह एक नहीं कर सकता इसके साथ अन्यथा भूमि कि भूमि Abadi बन गया है पर भूमि या सौदा के हस्तांतरण और वह इसके साथ किसी भी तरीके से वह पसंद में सौदा कर सकता. Mangu अहीर v. महावीर, 1988 301 आरडी (एचसी). 14. जाँच और भूमि के तहत 136 नियम के सीमांकन एक जांच किया जाता है या तो bhumidhar के आवेदन पर या तथ्यों पर करने के लिए आ रहा सहायक उप संभाग, स्वप्रेरणा के कलेक्टर के प्रभारी का ज्ञान जांच तहसीलदार द्वारा बनाया जा सकता है है जो अपनी रिपोर्ट के साथ भेज दिया है प्रोफार्मा में विवरण निर्धारित है. उप - मंडल अधिकारी तो एक अनुदान घोषणा. नियम 136 के तहत आरोपों की जांच उप - मंडल द्वारा किया जाता है आवेदन या स्वतः moto में उप प्रभाग के अधिकारी प्रभारी या वह हो सकता है जांच और रिपोर्ट के लिए तहसीलदार को एक ही भेजें. धारा 143 के तहत एक आवेदन किया गया था कि प्रश्न में भूखंड नहीं थे किसी भी कृषि प्रयोजनों के साथ जुड़ा हुआ है. अनुप्रयोग द्वारा बर्खास्त कर दिया गया था उप प्रभाग के सहायक कलेक्टर के प्रभारी. सीखा में कलेक्टर अपील ढूँढने फैसले को बरकरार रखा. एक संशोधन अतिरिक्त सीखा पहले दायर किया गया था आयुक्त. उन्होंने कहा कि धारा 143 के तहत घोषणा के लिए है, यह नहीं निर्धारित करने के लिए आवश्यक विवादित भूमि के bhumidhar कौन था. यह था आयोजित सीखा है कि अपर आयुक्त सही था और निचली अदालत में निहित विधि द्वारा अधिकारिता का प्रयोग करने में विफल रहा. Hirday नारायण v. राम किशोर, 1976 (Rev) AWC 84: 1976 265 आरडी. एक bhumidhar किसी भी प्रयोजन के के लिए भूमि का उपयोग करें और जहां एक आवेदन किया जाता है सकते हैं प्रभाव है कि भूमि को एक उद्देश्य असंगत wi9th के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है उद्देश्य के लिए इसे देना है वह बेदखली के लिए उत्तरदायी नहीं है. वह के लिए उत्तरदायी नहीं है बेदखली अगर वहाँ कोई हस्तांतरण नहीं है. केवल भूमि i9f सीमांकन किया जा सकता है पूरे या उसके किसी भी हिस्से के लिए कृषि भूमि ce4ases. यह भूमि है, भले ही धारा 143 लागू है. प्रताप राजस्व राय v. बोर्ड, 1980 322 Rd. 15. धारा 143 और cotenancy अधिकारों की घोषणा के लिए एक सूट दायर किया गया था और यह कभी भूमि के रूप में तैयार मुद्दों के बिना निर्णय लिया गया है संदर्भ - कहाँ धारा 143 के तहत उठाया जा रहा है एक संदर्भ स्वीकार कर लिया गया. रमेश चन्द्र सिंह वी. Sukhendra सिंह, 198u1 53 आरडी. 16. धारा 143 और धारा 191 - अंतर - Bhumidhari के विलुप्त होने धारा 191 के तहत अधिकार अधिनियम के गैर प्रयोज्यता से किसी भी अलग हैं भूमि. राजस्व प्रताप राय v. बोर्ड, 1980 322 आरडी (एचसी). 17. Z.A. के अध्याय X के आवेदन धारा के तहत कवर भूमि अधिनियम 143 - Z.A. के अध्याय X भू - राजस्व के साथ सौदों अधिनियम. यह एक के द्वारा आयोजित भूमि पर लागू होता है व्यक्ति कौन है या Bhumidhar हो समझा जाता है. यह एक व्यक्ति जो करने के लिए लागू नहीं होता Bhumidhar या नहीं है भूमि ऐसी है जो हरिणी धारा 2 की उपधारा (14) की परिभाषा के भीतर नहीं आया है. एक व्यक्ति जो निगमों से ऋण प्राप्त उपधारा (3) या घोषणा के तहत अपने पक्ष में दी के तहत वर्णित पिछले दो उप - अनुभाग Bhumidhar हो और जमीन भी नहीं है रहता है Z.A. के प्रयोजनों के लिए भूमि इसलिए अधिनियम भूमि की वसूली के लिए प्रावधान के तहत, अध्याय एक्स ऋण की वसूली के लिए लागू नहीं किया जा सकता है. प्रताप राय v. बोर्ड राजस्व, 1980 322 आरडी (एचसी). 18. 'धारित' 331 - ए - मतलब की धारा में इस्तेमाल किया - खंड में 331 एक शब्द आयोजित एक ही अर्थ है कि यह शीर्षक है कि कानूनी और मूल किया गया था करने के लिए संदर्भित करता है में प्रयोग किया जाता है. यह इतना Budhan सिंह v. नबी bux, +१,९६१ 22-0 Rd (एससी) में आयोजित किया गया था. 19. प्रक्रिया - इस अनुभाग के प्रावधानों द्वारा के तहत एक आवेदन द्वितीय अनुसूची के सीरियल No.11 और नियम के परिशिष्ट III के सीरियल No.15. फोरम - उप डिवीजन के सहायक कलेक्टर के प्रभारी. न्यायालय शुल्क - एक रुपया सीमा - उपयोगकर्ता के प्रारंभ से तीन साल 331 धारा (3) के तहत कलेक्टर को अपील - प्रथम अपील झूठ लेकिन नहीं होगा दूसरी अपील. अवतरण - एक संशोधन धारा 333 के तहत बोर्ड को झूठ होगा. 20. (1) उप - वर्गों, (2) और (3) - अन्य उप वर्गों दो के तहत का स्कोप अगर किसी भी देश के औद्योगिक प्रयोजन के लिए प्रयोग किया जाता है और एक घोषणा द्वारा दी जाती है सहायक कलेक्टर के इस प्रकार अध्याय आठवीं के प्रावधानों को लागू करने के लिए संघर्ष और यह करने के लिए उत्तराधिकार व्यक्तिगत कानून द्वारा शासित है और भूमि के दायरे से परे जाता है Z.A. की अधिनियम. परिणाम भूमि के संबंध में उपधारा (3) पर के तहत एक ही है उस पर ऋण ले लिया. पिछले उप वर्गों में कोई घोषणा नहीं की आवश्यकता है. एक व्यक्ति जो ऋण लेता है जो bhumidhar से ऋण प्राप्त करने के रहता वित्तीय निगम या किसी अन्य निगम द्वारा स्वामित्व या द्वारा नियंत्रित राज्य सरकार Bhumidhar हो रहता है और भूमि के प्रयोजनों के लिए भूमि नहीं है Z.A. अधिनियम. प्रताप राय v बोर्ड राजस्व, 1980 122 Rd (एचसी). 21. औद्योगिक प्रयोजन - शब्द "औद्योगिक प्रयोजन" परिभाषित नहीं किया गया है अधिनियम में कहीं भी, लेकिन वे एक कृषि करने के लिए विरोध अर्थ में लिया जाता है उद्देश्य. Fpor औद्योगिक उद्देश्यों के लिए कम से कम एक बात का इस्तेमाल भूमि है की स्थापना की. यदि भूमि का उपयोग करने के उद्देश्य से बढ़ा है कृषि willo यह उत्पादन कृषि के साथ जुड़ा उद्देश्य के लिए समान है. उपयोग नहीं बदल करता है जो एक कृषि प्रयोजन के लिए इस्तेमाल किया गया था भूमि के उपयोगकर्ता का उद्देश्य. परिस्थितियों है कि अंतिम उत्पादन मानव द्वारा सेवन नहीं किया जा रहा है लेकिन एक कारखाने के द्वारा प्राणी या जानवरों के लिए उद्देश्य निर्धारित करने के लिए अप्रासंगिक है भूमि इस्तेमाल किया जा रहा है. केसर शुगर वर्क्स लिमिटेड, उत्तर प्रदेश के v. राज्य, 1967 157 आरडी. आयकर v. B.K.S. आयुक्त रॉय, आकाशवाणी 1957 768 अनुसूचित जाति, यह आयोजित किया गया था कि शब्द कृषि अनाज के उत्पादन और केवल सीमित नहीं किया जा सकता है मनुष्य और जानवर के लिए खाद्य उत्पादों का मतलब है, लेकिन के रूप में समझा जाना चाहिए देश के सभी उत्पादों जो कुछ ut शामिल