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शुक्रवार, 26 अगस्त 2011

दिन में सोने वालो का बस हाल न पूछो,





दिन में सोने वालो का बस हाल न पूछो!
अपनी इस आदत के कारण कितना करते ,
ये नुकसान न पूछो !

यदि,
होते है, ये दुकानदार 
तो, ये सोते रह जाते
और सामने से ,
इन्हें सोता देख,
गूजर  जाता है, 
ग्राहक! जिससे 
प्रभावित होता 
इनका कारोबार,
चोपट हो जाता कैसे ,
इनका, तुम 
व्यापार,
न पूछो !
दिन में सोने वालो का बस हाल न पूछो!
अपनी इस आदत के कारण कितना करते ,
ये नुकसान न पूछो !

यदि,
होते है, ये अध्यापक,
तो खचा- खच भरी ,
रहती है, इनकी क्लास 
ये सो जाते है, कक्षा में !
सिर,  कुर्सी  पर रख कर,
छात्राए , 
करती  रहती मेकप,
छात्र मचाते हा-होल्ला ,
 करते है ,आराम 
ये उठते , हडबडा कर,
कितने होते ,
परेशान,
न,पूछो !

दिन में सोने वालो का बस हाल न पूछो!
अपनी इस आदत के कारण कितना करते ,
ये नुकसान न पूछो !
यदि ,
होते है ये , आशिक 
तो दिन में सो जाते
घर के किसी, कोने में ,
और सपने  में,
पहुच जाते है,
प्रेमिका के पास,
और सोये रहते ,
उसके आगोश में !
इतने में ,
पतनी की सुनकर ,
फटकर ,
ये आ जाते होस में ,
झट से ये जाते है जाग 
इनके, सुहाने सपनों कितना,
होता उत्पन्न,
व्याधान,
न पूछो!
दिन में सोने वालो का बस हाल न पूछो!
अपनी इस आदत के कारण कितना करते ,
ये नुकसान न पूछो !

यदि,
होते है ,ये इंटरनेट के कीड़े,
तो दिन में घंटो सोकर ,
रात में बैठे, रहते नेट पर,
पतनी से कर ,काम का 
बहाना, बाते करते है ,
लडकियों से, चैटिंग पर  
पकड़े जाने पर, पतनी के 
घर में कितना होता ,
घमाशान,
न पूछो ! 

दिन में सोने वालो का बस हाल न पूछो!
अपनी इस आदत के कारण कितना करते ,
ये नुकसान न पूछो !

......आपका यशपाल सिंह 

बुधवार, 24 अगस्त 2011

मुझे हक नही ,


मुझे  हक नही ,
कि मैं आज भी,
 आपको
अपना कहू ,
अब वो सम्मा
बुझ चुकी, 
परवाना भी जल  गया  !
शुआत हो चुकी,
पतझड़ की,
फूल कहाठरते ,
जब  कोई, 
पत्ते ही नही  रहा !

मुझे  हक नही ,
कि, मैं आज भी,
 आपको
अपना कहू ,

सूख 
गया  वो  बरगद ,जिसके नीचे 
हम मिला करते थे हम 
तन्हाई में अक्सर ,
लकड़ी 
ले गयी 
बीनने वाली 
जला दी चुल्ल्हे  
में 
घर ले जाकर!

मुझे  हक नही ,
कि, मैं आज भी,
 आपको
अपना कहू ,

शांत हुआ वो,
प्यार की
लहरों
का 
उफान,
और अब पानी
है शांत
डूब गयी
वो
ख्वाबो की 
किस्ती 
जिस पर हम करते थे मस्ती !
नही रहा   खिव्य्या,
न बचा पतवार,
बस प्यार के ,
अवशेष 
रह गये 
यार !

मुझे  हक नही ,
कि, मैं आज भी,
 आपको
अपना कहू ,

या
आपके दिल  में ,
रहू
आप हो गये किसी और 
के 
और हमारा कोई 
हो गया!

........यशपाल सिंह 


एक बारिश है


कभी बारिश बरसती है तो मुझको याद आता है
वो अक्सर मुझसे कहता था
मोहब्बत एक बारिश है
सभी पर जो बरसती है
मगर फिर भी नही होती ये सब के वास्ते यकसा
किसी के वास्ते राहत , किसी के वास्ते ज़हमत
मई अक्सर सोचता हूँ अब
वो मुझसे ठीक कहता था
मोहब्बत एक बारिश है
सभी पर जो बरसती है
कभी मुझ पर बरसती थी
मगर मेरे लिए बारिश कभी न बन सकी राहत
ये राहत क्यूँ नही बनती
कभी मैं खुद से पूछूँ तो ये दिल देता दुहाई है
कभी कच्चे मकानों को भी बारिश रास आई है ?

सोमवार, 22 अगस्त 2011

औरतें


औरतें –
मनाती हैं उत्सव
दीवाली, होली और छठ का
करती हैं घर भर में रोशनी
और बिखेर देती हैं कई रंगों में रंगी
खुशियों की मुस्कान
फिर, सूर्य देव से करती हैं
कामना पुत्र की लम्बी आयु के लिए।
औरतें –
मुस्कराती हैं
सास के ताने सुनकर
पति की डाँट खाकर
और पड़ोसियों के उलाहनों में भी।

औरतें –
अपनी गोल-गोल
आँखों में छिपा लेती हैं
दर्द के आँसू
हृदय में तारों-सी वेदना
और जिस्म पर पड़े
निशानों की लकीरें।
औरतें 


औरतें –
बना लेती हैं
अपने को गाय-सा
बँध जाने को किसी खूँटे से।

औरतें –
मनाती है उत्सव
मुर्हरम का हर रोज़
खाकर कोड़े
जीवन में अपने।

औरतें –
मनाती हैं उत्सव
रखकर करवाचौथ का व्रत
पति की लम्बी उम्र के लिए
और छटपटाती हैं रात भर
अपनी ही मुक्ति के लिए।

औरतें –
मनाती हैं उत्सव
बेटों के परदेस से
लौट आने पर
और खुद भेज दी जाती हैं
वृद्धाश्रम के किसी कोने में।

रविवार, 21 अगस्त 2011

चींटियाँ

चढ़ रही हैं लगातार
दीवार पर बार-बार
आ रही हैं
जा रहीं हैं
कतारबद्ध चींटियाँ

ढो रही हैं अपने घर का साजो-सामान
एक नए घर में
आशा और उम्मीद के साथ
गाती हुई
ज़िन्दगी का खूबसूरत तराना
इकट्ठी करती हुई
ज़रुरत की छोटी से छोटी
और बड़ी से बड़ी चीज़
बनाती हुई गति और लय को
अपनी जिंदगी का एक खास हिस्सा

अपने घर से
विस्थापित होती हुई चींटियाँ
चल देती हैं नए ठिए कि तलाश में
किसी भी शिकवा शिकायत के बग़ैर

पुराने घर की दीवारों से गले लगकर
रोती हैं चींटियाँ
बहाती नहीं हैं पर आँसू
दिखाती नहीं हैं आक्रोश
प्रकट नहीं करती हैं गुस्सा
जानती हैं फिर भी प्रतिरोध की ताक़त

मेहनत की क्यारी में खिले फूलों की सुगँध
सूँघती हैं चींटियाँ
सीखा नहीं है उन्होंने
हताश होना
ठहरना कभी
मुश्किल से मुश्किल समय में भी
उखड़ती नहीं है उनकी साँस
मसल दिए जाने के बाद भी
उठ खड़ी होती हैं चींटियाँ
लगे होते हैं उनके पैरों में डायनमो
चलते रहने के लिए
बढ़ने के लिए आगे ही आगे
पढ़ती हुई हर ख़तरे को
जूझती हैं चींटियाँ

जानती हैं वो आज़माना
मुठ्ठियों की ताक़त को एक साथ!!

शुक्रवार, 19 अगस्त 2011

क्या होगा जन लोकपाल विधेयक से?


आखिरकार विश्व के इस सबसे बड़े लोकतंत्र में “लोक” को ही भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज़ उठानी पड़ी. माननीय अन्ना हजारे जी इसके अगुआ बने और उनको अपार जनसमर्थन भी मिल रहा है. वास्तव में देखा जाए तो स्वतन्त्रता प्राप्ति के उपरान्त सत्ताधीशों ने इस राष्ट्र के संसाधनों का दोहन अपने लिए किया न की राष्ट्र के लिए, जनता के लिए. विश्व के इस सबसे बड़े “लोकतंत्र” में “लोक” ही सबसे ज्यादा उपेक्षित है, इस सबसे बड़े “गणतंत्र” के “गण” को ही गौण बना दिया गया है. हमारे राजनीतिज्ञों ने भी अंग्रेजों की निति “फूट डालो और राज करो” का अनुशरण करते हुए पूरे राष्ट्र को अलग अलग समुदायों में बाँट दिया. जिससे उनकी स्वार्थसिद्धि आसानी के साथ होती रहे. परिणामस्वरुप इस राष्ट्र के नागरिक अपने अपने स्वार्थों को वरीयता देने लगे और राष्ट्रीय हित गौण होते चले गए. भ्रष्टाचार बढ़ता गया.क्या ये आश्चर्यजनक और शर्मनाक नहीं है की जनता को सरकार के समक्ष भ्रष्टाचार के विरुद्ध क़ानून बनवाने लिए अनशन करना पड़ रहा है और सरकार उस पर भी सोच रही है, विचार कर रही है, समितियां बना रही है इस विषय को खिंच रही तत्परता से कोई कार्यवाही नहीं. यदि कोई व्यक्ति राष्ट्रीय विषय के सन्दर्भ में भूखा सो रहा है तो ये कहाँ तक उचित है और उस सरकार का नैतिक दायित्व क्या है? यदि किसी सरकार के समक्ष “भ्रष्टाचार के विरुद्ध कार्यवाही करने को लेकर” बात मनवाने के वहां की जनता को भूखा रहना पड़ रहा है तो सरकार को बने रहने का कितना अधिकार है. लेकिन इस गणतंत्र में सब हो रहा है ढिठाई के साथ. बिल्लियाँ स्वयं बैठी हैं दूध की रखवाली के लिए तो दूध कैसे सुरक्षित रहेगा. भ्रष्टाचारी स्वयं के विरुद्ध क़ानून कैसे बनायें.


ऐसा नहीं है की ये भ्रष्टाचार के विरुद्ध पहली बार कोई आवाज़ उठाई गयी है. पूर्व में, जयप्रकाश नारायण ने भी भ्रष्टाचार के विरुद्ध आन्दोलन चलाया था और वो तत्कालीन सत्ताधीशों को परिवर्तित करने में सफल भी रहे, परन्तु क्या भ्रष्टाचार समाप्त हुआ? शायद नहीं क्यों? तो क्या हो जाएगा एक और क़ानून बनाने से?

लोकतंत्र के चार स्तम्भ होते हैं विधायिका, न्यायपालिका, कार्यपालिका और प्रेस. क्या हमारे देश में इन सबने अपने दायित्वों का निर्वाहन ठीक ढंग से किया है,यदि नहीं तो इसकी जवाबदेही किस पर है और यदि हाँ तो इतनी अराजकता कैसे? लोकतंत्र की क्या आवश्यकता है.  क्या इस देश में किसी की भी कोई जवाबदेही है? किसी भी स्तर पर किसी भी कर्मचारी सरकारी अथवा गैर सरकारी, व्यवसायी,  अथवा नेता और समस्त नागरिक सबको अपने अधिकारों का तो भान है पर किसी को अपने कर्तव्यों ज्ञान है? इन सबकी अपने अपने विभाग अथवा देश के प्रति क्या जवाबदेहि है. यदि कोई नहीं तो भूल जाइए की किसी भी क़ानून से भ्रष्टाचार कम हो जाएगा. कानूनों की तो इस देश में वैसे भी कोई कमी नहीं है. नए पुराने बहुत तरह के क़ानून हैं.  पर क्या हुआ उन कानूनों से क्या दहेज़ खत्म हो गया, या आतंकवाद ख़त्म हो गया, जब तक हर व्यक्ति राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों को लेकर सजग नहीं होगा और जवाबदेही निश्चित नहीं होगी तब तक किसी भी आन्दोलन का कोई प्रभाव होगा कहना मुश्किल है.

मैं माननीय अन्ना  हजारे जी का विरोध नहीं कर रहा हूँ, जबकि मेरा मानना है की जिस भ्रष्टाचार के विरोध में उन्होंने कमर कसी है उस में केवल क़ानून बनाने से कुछ नहीं होगा साथ ही साथ सबकी जवाबदेही भी निश्चित कर दी जाए तो ज्यादा ठीक होगा.  

वास्तव में देखा जाए तो इन सब बातों के मूल फिर से वही हमारी शिक्षा पद्धति का दोष…..! अब शिक्षा में नैतिकता की बातों को वरीयता नहीं दी जाती और न ही अपने पूर्वजों  महापुरुषों के विषय में जानकारी दी जाती है जिसके कारण लोगों के समक्ष अब कोई आदर्श नहीं हैं  जब अपने ही राष्ट्र के महापुरुषों के विषय में पढाये जाने पर भगवाकरण की बात कही जाती हो, अपने ही महापुरूषों के विषय में पढने पर शर्म महसूस की जाती हो तो भला किसी का कोई आदर्श कैसे हो सकता है आदमी सैद्धांतिक कैसे हो सकता है, और गांधीजी ने कहा ही था की “आदर्श रहित मनुष्य पतवार रहित जहाज के समान है” जो कभी भी डगमगा सकता है. और इस सबका एक ही समाधान है शिक्षा पद्धति में सुधार और व्यक्तियों के चरित्र निर्माण को महत्व दिया जाए न की व्यवसायिक शिक्षा को. केवल उच्च चरित्र से ही एक सशक्त राष्ट्र का निर्माण संभव है अन्यथा एक और क़ानून तो बन जाएगा परन्तु उसकी क्या उपयोगिता रहेगी या उसका दुरपयोग नहीं होगा कहना मुश्किल है. इसलिए चरित्र निर्माण कीजिये व्यक्ति निर्माण कीजिये जिससे किसी को अन्ना  हजारे जी की तरह अनशन पर न बैठना पड़े और किसी लोकतंत्र के इतिहास में ऐसा काला दिन न आये

क्या है जन लोकपाल बिल


कुछ जागरूक  नागरिकों द्वारा शुरू की गई एक पहल का नाम है 'जन लोकपाल बिल'. इस कानून के अंतर्गत, केंद्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त का गठन होगा. जस्टिस संतोष हेगड़े, प्रशांत भूषण और अरविन्द केजरीवाल द्वारा बनाया गया यह विधेयक लोगो के द्वारा वेबसाइट पर दी गयी प्रतिक्रिया और जनता के साथ विचार विमर्श के बाद तैयार किया गया है. यह संस्था निर्वाचन आयोग और सुप्रीम कोर्ट की तरह सरकार से स्वतंत्र होगी. कोई भी नेता या सरकारी अधिकारी जांच की प्रक्रिया को प्रभावित नहीं कर पायेगा. इस बिल को शांति भूषण, जे. एम. लिंगदोह, किरण बेदी, अन्ना हजारे आदि का भारी समर्थन प्राप्त हुआ है.

इस बिल की मांग है कि भ्रष्टाचारियो  के खिलाफ किसी भी मामले की जांच एक साल के भीतर पूरी की जाये. परिक्षण एक साल के अन्दर पूरा होगा और दो साल के अन्दर ही भ्रष्ट नेता व आधिकारियो को सजा सुनाई जायेगी . इसी के साथ ही भ्रष्टाचारियो का अपराध सिद्ध होते ही उनसे सरकर को हुए घाटे की वसूली भी  की जाये. यह बिल एक आम नागरिक के लिए मददगार जरूर साबित होगा, क्यूंकि यदि किसी नागरिक का काम तय समय में नहीं होता तो लोकपाल बिल दोषी अफसर पर जुरमाना लगाएगा और वह जुरमाना शिकायत कर्ता को मुआवजे के रूप में मिलेगा. इसी के साथ अगर आपका राशन कार्ड, मतदाता पहचान पत्र, पासपोर्ट आदि तय समय के भीतर नहीं बनता है या पुलिस आपकी शिकायत दर्ज नहीं करती है तो आप इसकी शिकायत लोकपाल से कर सकते है.  आप किसी भी तरह के भ्रष्टाचार की शिकायत लोकपाल से कर सकते है जैसे कि सरकारी राशन में काला बाजारी, सड़क बनाने में गुणवत्ता की अनदेखी,  या फिर पंचायत निधि का  दुरूपयोग.

लोकपाल के सदस्यों  का चयन जजों, नागरिको और संवैधानिक संस्थायो द्वारा किया जायेगा. इसमें कोई भी नेता की कोई भागीदारी नहीं होगी.  इनकी नियुक्ति पारदर्शी तरीके से, जनता की भागीदारी से होगी.
सीवीसी, विजिलेंस विभाग, सी बी आई  की भ्रष्टाचार निरोधक विभाग (ऐन्टी करप्शन डिपार्ट्मन्ट) का लोकपाल में विलय कर दिया जायेगा. लोकपाल को किसी जज, नेता या अफसर के खिलाफ जांच करने व मुकदमा चलाने के लिए पूर्ण अधिकार प्राप्त होंगें.

इस बिल की प्रति प्रधानमंत्री एवं सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को १ दिसम्बर २०१० को भेजी गयी थी, जिसका अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है. 

खास है जन लोकपाल विधेयक:


• अध्यक्ष समेत दस सदस्यों वाली एक लोकपाल संस्था होनी चाहिए.
• भ्रष्टाचार के मामलों की जांच करने वाली सीबीआइ के हिस्से को इस लोकपाल में शामिल कर दिया जाना चाहिए.
• सीवीसी और विभिन्न विभागों में कार्यरत विजिलेंस विंग्स का लोकपाल में विलय कर दिया जाना चाहिए.
• लोकपाल सरकार से एकदम स्वतंत्र होगा.
• नौकरशाह, राजनेता और जजों पर इनका अधिकार क्षेत्र होगा.
• बगैर किसी एजेंसी की अनुमति के ही कोई जांच शुरू करने का इसे अधिकार होगा.
• जनता को प्रमुख रूप से सरकारी कार्यालयों में रिश्वत मांगने की समस्या से गुजरना पड़ता है। लोकपाल एक.
• अपीलीय प्राधिकरण और निरीक्षक निकाय के तौर पर केंद्र सरकार के सभी कार्यालयों में कार्रवाई कर सकेगा.
• विसलब्लोअर को संरक्षण प्रदान करेगा.
• लोकपाल के सदस्यों और अध्यक्ष का चुनाव पारदर्शी तरीके से किया जाना चाहिए.
• लोकपाल के किसी अधिकारी के खिलाफ यदि कोई शिकायत होती है तो उसकी जांच पारदर्शी तरीके से एक महीने की भीतर होनी चाहिए.


जन लोकपाल की खूबियां और सरकारी प्रारूप में खामियां
विषय: राजनेता, नौकरशाह और न्यायपालिका पर अधिकार क्षेत्र
सरकारी विधेयक: सीवीसी का अधिकार क्षेत्र नौकरशाहों और लोकपाल का राजनेताओं
पर। न्यायपालिका पर कोई कानून नहीं
जन लोकपाल: राजनेता, नौकरशाह व न्यायपालिका दायरे में
क्यों?: भ्रष्टाचार राजनेता और नौकरशाहों की मिलीभगत से ही होता है। ऐसे में सीवीसी और लोकपाल को अलग अधिकार क्षेत्र देने से इन मामलों को व्यवहारिक दृष्टि से निपटाने में दिक्कतें पेश आएंगी। यदि किसी केस में दोनों संस्थाओं के अलग निष्कर्ष निकलते हैं तो कोर्ट में आरोपी के बचने की आशंका ज्यादा होगी.

विषय: लोकपाल की शक्तियां
सरकारी विधेयक: सलाहकारी निकाय होना चाहिए
जन लोकपाल: किसी की अनुमति के बगैर ही जांच प्रक्रिया शुरू करने का अधिकार होना चाहिए
क्यों?: सलाहकारी भूमिका में यह सीवीसी की तरह अप्रभावी होगा.

विषय: विसलब्लोअर संरक्षण
सरकारी विधेयक: इनकी सुरक्षा के लिए सरकार ने हाल में एक बिल पेश किया है जिसमें सीवीसी को सुरक्षा का उत्तरदायित्व दिया गया है.
जन लोकपाल: सीधे तौर पर इनकी सुरक्षा का प्रावधान
क्यों?: सीवीसी के पास न तो शक्तियां हैं और न ही संसाधन, जो विसलब्लोअर की सुरक्षा करे.

विषय: लोकपाल का चयन और नियुक्ति
सरकारी विधेयक: प्रमुख रूप से सत्ता पक्ष और विपक्ष के सदस्यों से बनी एक कमेटी द्वारा इनका चयन जन लोकपाल: गैर राजनीतिक व्यक्तियों की एक कमेटी द्वारा चयन
क्यों?: कोई भी राजनीतिक पार्टी हो, वह सशक्त और स्वतंत्र लोकपाल नहीं चाहती

विषय: लोकपाल की पारदर्शिता और जवाबदेही
सरकारी विधेयक: कोई प्रावधान नहीं
जन लोकपाल: कार्यप्रणाली पारदर्शी हो। किसी लोकपाल कर्मचारी के खिलाफ शिकयत का निस्तारण एक महीने के भीतर होना चाहिए और दोषी पाए जाने पर उसको बर्खास्त किया जाना चाहिए.

विषय: भ्रष्टाचार मामलों में सरकार को हुए धन की क्षतिपूर्ति
सरकारी विधेयक: कोई प्रावधान नहीं
जन लोकपाल: भ्रष्टाचार के कारण सरकार की हुई किसी भी मात्रा की आर्थिक क्षति का आकलन ट्रायल कोर्ट करेगी और इसकी वसूली दोषियों से की जाएगी.

शनिवार, 13 अगस्त 2011

जन लोकपाल विधेयक


जन लोकपाल विधेयक

जन लोकपाल विधेयक भारत में प्रस्तावित भ्रष्टाचारनिरोधी विधेयक का मसौदा है। यदि इस तरह का विधेयक पारित हो जाता है तो भारत में जन लोकपाल चुनने का रास्ता साफ हो जायेगा जो चुनाव आयुक्त की तरह स्वतंत्र संस्था होगी। जन लोकपाल के पास भ्रष्ट राजनेताओं एवं नौकरशाहों पर बिना सरकार से अनुमति लिये ही अभियोग चलाने की शक्ति होगी। जस्टिस संतोष हेगड़े, प्रशांत भूषण, सामाजिक कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल ने यह बिल जनता के साथ विचार विमर्श के बाद तैयार किया है।

अनुक्रम

 [छुपाएँ]

[संपादित करें]जन लोकपाल विधेयक के मुख्य बिन्दु

  • इस कानून के तहत केंद्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त का गठन होगा।
  • किसी भी मुकदमे की जांच एक साल के भीतर पूरी होगी। ट्रायल अगले एक साल में पूरा होगा।
  • भ्रष्ट नेता, अधिकारी या जज को 2 साल के भीतर जेल भेजा जाएगा।
  • भ्रष्टाचार की वजह से सरकार को जो नुकसान हुआ है अपराध साबित होने पर उसे दोषी से वसूला जाएगा।
  • अगर किसी नागरिक का काम तय समय में नहीं होता तो लोकपाल दोषी अफसर पर जुर्माना लगाएगा जो शिकायतकर्ता को मुआवजे के तौर पर मिलेगा।
  • लोकपाल के सदस्यों का चयन जज, नागरिक और संवैधानिक संस्थाएं मिलकर करेंगी। नेताओं का कोई हस्तक्षेप नहीं होगा।
  • लोकपाल/ लोक आयुक्तों का काम पूरी तरह पारदर्शी होगा। लोकपाल के किसी भी कर्मचारी के खिलाफ शिकायत आने पर उसकी जांच 2 महीने में पूरी कर उसे बर्खास्त कर दिया जाएगा।
  • सीवीसी, विजिलेंस विभाग और सीबीआई के ऐंटि-करप्शन विभाग का लोकपाल में विलय हो जाएगा।
  • लोकपाल को किसी भी भ्रष्ट जज, नेता या अफसर के खिलाफ जांच करने और मुकदमा चलाने के लिए पूरी शक्ति और व्यवस्था होगी।

[संपादित करें]जन लोकपाल बिल की प्रमुख शर्तें

न्यायाधीश संतोष हेगड़ेप्रशांत भूषण और अरविंद केजरीवाल द्वारा बनाया गया यह विधेयक लोगों द्वारा वेबसाइट पर दी गई प्रतिक्रिया और जनता के साथ विचार-विमर्श के बाद तैयार किया गया है। इस बिल को शांति भूषण, जे एम लिंग्दोह, किरण बेदीअन्ना हजारे आदि का समर्थन प्राप्त है। इस बिल की प्रति प्रधानमंत्री और सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को एक दिसम्बर को भेजा गया था।
1. इस कानून के अंतर्गत, केंद्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त का गठन होगा।
2. यह संस्था निर्वाचन आयोग और सुप्रीम कोर्ट की तरह सरकार से स्वतंत्र होगी। कोई भी नेता या सरकारी अधिकारी की जांच की जा सकेगी
3. भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कई सालों तक मुकदमे लम्बित नहीं रहेंगे। किसी भी मुकदमे की जांच एक साल के भीतर पूरी होगी। ट्रायल अगले एक साल में पूरा होगा और भ्रष्ट नेता, अधिकारी या न्यायाधीश को दो साल के भीतर जेल भेजा जाएगा।
4. अपराध सिद्ध होने पर भ्रष्टाचारियों द्वारा सरकार को हुए घाटे को वसूल किया जाएगा।
5. यह आम नागरिक की कैसे मदद करेगा: यदि किसी नागरिक का काम तय समय सीमा में नहीं होता, तो लोकपाल जिम्मेदार अधिकारी पर जुर्माना लगाएगा और वह जुर्माना शिकायतकर्ता को मुआवजे के रूप में मिलेगा।
6. अगर आपका राशन कार्ड, मतदाता पहचान पत्र, पासपोर्ट आदि तय समय सीमा के भीतर नहीं बनता है या पुलिस आपकी शिकायत दर्ज नहीं करती तो आप इसकी शिकायत लोकपाल से कर सकते हैं और उसे यह काम एक महीने के भीतर कराना होगा। आप किसी भी प्रकार के भ्रष्टाचार की शिकायत लोकपाल से कर सकते हैं जैसे सरकारी राशन की कालाबाजारी, सड़क बनाने में गुणवत्ता की अनदेखी, पंचायत निधि का दुरुपयोग। लोकपाल को इसकी जांच एक साल के भीतर पूरी करनी होगी। सुनवाई अगले एक साल में पूरी होगी और दोषी को दो साल के भीतर जेल भेजा जाएगा।
7. क्या सरकार भ्रष्ट और कमजोर लोगों को लोकपाल का सदस्य नहीं बनाना चाहेगी? ये मुमकिन नहीं है क्योंकि लोकपाल के सदस्यों का चयन न्यायाधीशों, नागरिकों और संवैधानिक संस्थानों द्वारा किया जाएगा न कि नेताओं द्वारा। इनकी नियुक्ति पारदर्शी तरीके से और जनता की भागीदारी से होगी।
8. अगर लोकपाल में काम करने वाले अधिकारी भ्रष्ट पाए गए तो? लोकपाल / लोकायुक्तों का कामकाज पूरी तरह पारदर्शी होगा। लोकपाल के किसी भी कर्मचारी के खिलाफ शिकायत आने पर उसकी जांच अधिकतम दो महीने में पूरी कर उसे बर्खास्त कर दिया जाएगा।
9. मौजूदा भ्रष्टाचार निरोधक संस्थानों का क्या होगा? सीवीसी, विजिलेंस विभाग, सीबीआई की भ्रष्टाचार निरोधक विभाग (अंटी कारप्शन डिपार्टमेंट) का लोकपाल में विलय कर दिया जाएगा। लोकपाल को किसी न्यायाधीश, नेता या अधिकारी के खिलाफ जांच करने व मुकदमा चलाने के लिए पूर्ण शक्ति और व्यवस्था भी होगी।

[संपादित करें]सरकारी बिल और जनलोकपाल बिल में मुख्य अंतर

सरकारी लोकपाल के पास भ्रष्टाचार के मामलों पर ख़ुद या आम लोगों की शिकायत पर सीधे कार्रवाई शुरु करने का अधिकार नहीं होगा. सांसदों से संबंधित मामलों में आम लोगों को अपनी शिकायतें राज्यसभा के सभापति या लोकसभा अध्यक्ष को भेजनी पड़ेंगी. वहीं प्रस्तावित जनलोकपाल बिल के तहत लोकपाल ख़ुद किसी भी मामले की जांच शुरु करने का अधिकार रखता है. इसमें किसी से जांच के लिए अनुमति लेने की ज़रूरत नहीं है सरकार द्वारा प्रस्तावित लोकपाल को नियुक्त करने वाली समिति में उपराष्ट्रपति. प्रधानमंत्री, दोनो सदनों के नेता, दोनो सदनों के विपक्ष के नेता, क़ानून और गृह मंत्री होंगे. वहीं प्रस्तावित जनलोकपाल बिल में न्यायिक क्षेत्र के लोग, मुख्य चुनाव आयुक्त, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, भारतीय मूल के नोबेल और मैगासेसे पुरस्कार के विजेता चयन करेंगे ।

[संपादित करें]राज्यसभा के सभापति या स्पीकर से अनुमति

सरकारी लोकपाल के पास भ्रष्टाचार के मामलों पर ख़ुद या आम लोगों की शिकायत पर सीधे कार्रवाई शुरु करने का अधिकार नहीं होगा. सांसदों से संबंधित मामलों में आम लोगों को अपनी शिकायतें राज्यसभा के सभापति या लोकसभा अध्यक्ष को भेजनी पड़ेंगी.वहीं प्रस्तावित जनलोकपाल बिल के तहत लोकपाल ख़ुद किसी भी मामले की जांच शुरु करने का अधिकार रखता है. इसमें किसी से जांच के लिए अनुमति लेने की ज़रूरत नहीं है.सरकारी विधेयक में लोकपाल केवल परामर्श दे सकता है. वह जांच के बाद अधिकार प्राप्त संस्था के पास इस सिफ़ारिश को भेजेगा. जहां तक मंत्रीमंडल के सदस्यों का सवाल है इस पर प्रधानमंत्री फ़ैसला करेंगे. वहीं जनलोकपाल सशक्त संस्था होगी. उसके पास किसी भी सरकारी अधिकारी के विरुद्ध कार्रवाई की क्षमता होगी.सरकारी विधेयक में लोकपाल के पास पुलिस शक्ति नहीं होगी. जनलोकपाल न केवल प्राथमिकी दर्ज करा पाएगा बल्कि उसके पास पुलिस फ़ोर्स भी होगी.सरकारी विधेयक में लोकपाल केवल परामर्श दे सकता है. वह जांच के बाद अधिकार प्राप्त संस्था के पास इस सिफ़ारिश को भेजेगा. जहां तक मंत्रीमंडल के सदस्यों का सवाल है इस पर प्रधानमंत्री फ़ैसला करेंगे. वहीं जनलोकपाल सशक्त संस्था होगी. उसके पास किसी भी सरकारी अधिकारी के विरुद्ध कार्रवाई की क्षमता होगी.सरकारी विधेयक में लोकपाल के पास पुलिस शक्ति नहीं होगी. जनलोकपाल न केवल प्राथमिकी दर्ज करा पाएगा बल्कि उसके पास पुलिस फ़ोर्स भी होगी

[संपादित करें]अधिकार क्षेत्र सीमित

अगर कोई शिकायत झूठी पाई जाती है तो सरकारी विधेयक में शिकायतकर्ता को जेल भी भेजा जा सकता है. लेकिन जनलोकपाल बिल में झूठी शिकायत करने वाले पर जुर्माना लगाने का प्रावधान है.
सरकारी विधेयक में लोकपाल का अधिकार क्षेत्र सांसद, मंत्री और प्रधानमंत्री तक सीमित रहेगा. जनलोकपाल के दायरे में प्रधानमत्री समेत नेता, अधिकारी, न्यायाधीश सभी आएँगे.
लोकपाल में तीन सदस्य होंगे जो सभी सेवानिवृत्त न्यायाधीश होंगे. जनलोकपाल में 10 सदस्य होंगे और इसका एक अध्यक्ष होगा. चार की क़ानूनी पृष्टभूमि होगी. बाक़ी का चयन किसी भी क्षेत्र से होगा.

[संपादित करें]चयनकर्ताओं में अंतर

सरकार द्वारा प्रस्तावित लोकपाल को नियुक्त करने वाली समिति में उपराष्ट्रपति. प्रधानमंत्री, दोनो सदनों के नेता, दोनो सदनों के विपक्ष के नेता, क़ानून और गृह मंत्री होंगे. वहीं प्रस्तावित जनलोकपाल बिल में न्यायिक क्षेत्र के लोग, मुख्य चुनाव आयुक्त, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, भारतीय मूल के नोबेल और मैगासेसे पुरस्कार के विजेता चयन करेंगे.लोकपाल की जांच पूरी होने के लिए छह महीने से लेकर एक साल का समय तय किया गया है. प्रस्तावित जनलोकपाल बिल के अनुसार एक साल में जांच पूरी होनी चाहिए और अदालती कार्यवाही भी उसके एक साल में पूरी होनी चाहिए.
सरकारी लोकपाल विधेयक में नौकरशाहों और जजों के ख़िलाफ़ जांच का कोई प्रावधान नहीं है. लेकिन जनलोकपाल के तहत नौकरशाहों और जजों के ख़िलाफ़ भी जांच करने का अधिकार शामिल है. भ्रष्ट अफ़सरों को लोकपाल बर्ख़ास्त कर सकेगा.

[संपादित करें]सज़ा और नुक़सान की भरपाई

सरकारी लोकपाल विधेयक में दोषी को छह से सात महीने की सज़ा हो सकती है और धोटाले के धन को वापिस लेने का कोई प्रावधान नहीं है. वहीं जनलोकपाल बिल में कम से कम पांच साल और अधिकतम उम्र क़ैद की सज़ा हो सकती है. साथ ही धोटाले की भरपाई का भी प्रावधान है.
ऐसी स्थिति मे जिसमें लोकपाल भ्रष्ट पाया जाए, उसमें जनलोकपाल बिल में उसको पद से हटाने का प्रावधान भी है. इसी के साथ केंद्रीय सतर्कता आयुक्त, सीबीआई की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा सभी को जनलोकपाल का हिस्सा बनाने का प्रावधान भी है.

[संपादित करें]इन्हें भी देखें

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