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रविवार, 29 मई 2011

मर गया मै आज, मुझे ना बुलाना!
भूल गया मै इंसानियत, देख कर ऐसा ज़माना!


कहीं मदद को पाँव ठहरते है नहीं!
मूंद लेता हूँ मै आंखे देख कर किसी की जरुरत!


चुप ही रहता हूँ  जान  कर भी बुरी कोई हकीकत
छोड़ दिया मैने इंसान को इंसान समझना!


छूट गयी आदत जबान से प्रेम कहना
मर गया आज मै मुझे ना बुलाना!


दर्द से किसी के मै पिघलता हू नहीं!
बिना जरुरत स्वार्थ के संभालता हूँ  नही!


किसी के फर्क से मै मन से मचलता हूँ नहीं !
मर गया खुदा का जब वो बनाया इंसान 


समझ लेना मै भी आज अब जिंदा हूँ नहीं!
मर गया आज मै, मुझे ना बुलाना!


तन को अग्नी मे जला के कोई क्या मरे!
मन के एह्साह को मार के मै तो आज ज़िंदा हूँ नहीं!



http://datastore.rediff.com/h5000-w5000/thumb/5E556B6F5857665F6D695E6763/fje9e2gm2a1jfyka.D.0.moongfali-wala-555x950.jpgमूंगफली वाला!!!
अपनी हंडिया की गर्मी से वो मूंगफली खिला रहा था!
और सामने खड़ा चाउमीन वाला फटाफट प्लेट भर भर चाउमीन खिला रहा था!
कोहरा और ठण्ड और रास्ते का किनारा !
मूंगफली वाला बैठा ताके हर राही का सहारा !
अपनी मूंगफली पर बिचारा इतराता कैसे !
कुहरे की धुंध मे, हंडिया के धुंवे से, राही मे चाव जगाता कैसे!
माटी की खुशबू मे खूब भूंजी है, टुकुर टुकुर बतला रहा था!
चाउमीन वाला चीन की तरह जोर तरक्की दिखला रहा था!
दोनों नरम थी, दोनों गरम थी, दोनों सड़क पर थी आमने सामने !
बदला चस्का और चाव स्वाद का आज समय ये उसको जता रहा था !
वही काढ़ाही , वही आग, वही दोनों गरीब
पर चाउमीन वाले की भरी गरम जेब
मूंगफली वाले की भरी गरम डलिया को जाते जाते ठेंगा 
दिखा रहा था!

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