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गुरुवार, 26 मई 2011

एक चिड़िया

क्या कोई चिड़िया
उड़ सकती है
अपने टूटे हुए डैनों के साथ
लहुलुहान, नुचे पंखो के साथ।
जरा सोचो,
उस चिड़िया ने चाहा ही क्या था ..............?
एक छोटा सा घोंसला, चिड़वा और चूजों का सुख।
कभी-कभार खुले आकाष मं 
दूर तक उड़ने की चाह।
भोजन के तलाष में जाते हुए
नहीं होती थी बन्दिशें।
पर.....
अपने पहचान पर थी रोक और बंदिरो।
लगातार कर्तव्यों की फेहरिस्त पूरी करते-करते कहाँ रह गयी थी, वह पूरी चिड़िया।

कभी-कभी एक चिड़िया
छू लेती है पूरा आकाष
पहुंच जाती है सूरज के पास
यह जानते हुए कि झुलस सकते हैं उसके पर।
पर...

कभी-कभी नहीं फैला पाती
एक चिड़िया अपने पर
नहीं ताक पाती, खुले आसमान को जी भर।
नहीं चुन पाती, भूख से आकुल होकर
अपने और चूजों के लिए भोजन।
वह मजबूर है खुद को, चूजों को भूख से तड़पते रहने के लिए।
सोचो....
क्या... ?
तुम चिड़िया बनना चाहोगी।

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